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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि वाले भी जानते हैं कि समाज को इस तरह चलाया नहीं जा सकता। समाज कोई जानवरों का समूह नहीं, जिसे डंडे से हांका जा सके ।
दो महत्त्वपूर्ण शब्द हैं- हृदय परिवर्तन और साधन - शुद्धि में विश्वास । अहिंसा के क्रम में ये दो आधारभूत क्रम हैं । किन्तु हम मात्र शब्दों को पकड़ते हैं । यह नहीं जानते कि हृदय परिवर्तन कैसे होता है ? इसकी प्रक्रिया क्या है ? साधन - शुद्धि में हमारी आस्था कैसे बढ़े ? यह तो प्रक्रिया की विस्मृति हुई है, अहिंसा सार्वभौम की कल्पना में इसी पर सबसे ज्यादा बल दिया गया था । जब तक मनुष्य में आस्था बल नहीं जागेगा, तब तक अहिंसा की संभावना नहीं की जा सकती। सबसे गहरी बात है आस्था का बल और समर्पण । समर्पण भी एक महान शक्ति के प्रति और एक महान लक्ष्य के प्रति ।
प्राचीन मिस्र देश में दास प्रथा थी। वहां गुलामों की बिक्री होती थी । एक दिन बाजार में गुलामों की बिक्री हो रही थी, बोलियां लगाई जा रही थीं तो एक महात्मा उधर से निकले। पूछा तो बताया गया कि गुलामों की बिक्री हो रही है । महात्माजी एक दास के पास गए और पूछा- तुम क्या करोगे ? उत्तर मिला- जो मालिक कहेगा। क्या खाओगे ? जो मालिक देगा । कहाँ रहोगे ? जहाँ मालिक कहेगा । प्रत्येक प्रश्न का उत्तर - मालिक की इच्छा । महात्मा रो पड़ा । बोला- एक दास में इतना समर्पण, और मैं भगवान की प्राप्ति में निकला हूँ, किन्तु आज तक भगवान के प्रति इतना समर्पित नहीं हो सका ।
दूसरी बात, अहिंसा के विकास के लिए चाहिए अभय । जब तक अभय का विकास नहीं होगा तब तक अहिंसा की चर्चा ही व्यर्थ है । जो व्यक्ति डरता रहता है, वह कभी अहिंसा को तेजस्वी नहीं बना सकता ।
तीसरी बात है सद्भावना का विकास | मैत्री या प्रेम का विकास। अपने विरोधी के प्रति भी मन में पूरी सद्भावना जिसके नहीं होगी, वह सफल अहिंसक नहीं हो सकता । महात्मा गाँधी ने बहुत गहरी भेद रेखा खींची थी पापी और पाप बीच में । पाप या बुराई केप्रति घृणा का भाव हो सकता है किन्तु व्यक्ति के प्रति नहीं, पापी के प्रति नहीं । जब इस सद्भावना का विकास होता है, तभी अहिंसा की संभावना की जा सकती है। आज तो मुझे लगता है कि धार्मिकों में, अहिंसा के समर्थकों में भी इतनी गहन सद्भावना की बात दिखाई नहीं देती । यदि होती तो जातीयता, साम्प्रदायिकता आदि के ताप से हिन्दुस्तानियों का मानस संतप्त नहीं होता । सद्भावना के लिए अनिवार्य है कष्ट-सहिष्णुता का विकास ।
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