________________
अहिंसा तेजस्वी कैसे हो ?
१२७
जो कष्ट-सहिष्णु नहीं, वह अहिंसा के पथ पर चल नहीं सकता । अहिंसक व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी कष्ट - साहिष्णुता का विकास करता है और समय पर अहिंसा के लिए आने वाले बड़े से बड़े कष्ट को झेलने की वह क्षमता रखता है
1
1
आचार्य भिक्षु अहिंसा के एक बहुत बड़े व्याख्याकार ही नहीं, प्रयोक्ता भी थे । उनके लिए जयाचार्य ने लिखा है- 'मरण धार सुध मग लियो ।' उन्होंने अहिंसा के पथ पर चलने का संकल्प लिया तो इस प्रकल्पना के साथ कि प्राण दे दूँगा पर इस मार्ग से कभी विचलित नहीं होऊँगा । इस संकल्प के लिए उन्होंने इतनी कठिनाइयां झेली कि उन्हें हर आदमी झेल नहीं सकता ।
यह आन्तरिक बल का विकास, वीरता, पराक्रम, कहीं भी हिंसा के सामने घुटने न टेकने का प्रबल संकल्प, अदम्य आत्म-विश्वास - ये अहिंसा की शर्तें हैं । इनका विकास किए बिना अहिंसा को तेजस्वी बनाने की बात संभव नहीं है । प्रश्न होगा, यह कैसे संभव है ? इसी पर तो हमें विचार करना है। आदमी कर सकता है । आदमी की क्षमता में पूरा विश्वास है, यदि वह अपनी क्षमता को जान सके । आज के मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अभी तक मनुष्य के मस्तिष्क का पांच-छह प्रतिशत ही विकास हो पाया है। शेष भाग को भी जागृत और विकसित किया जा सकता है । इस बिन्दु पर आकर हमारे सामने अहिंसा के शोध की, प्रयोग की और प्रशिक्षण की एक अपेक्षा आ जाती है ।
आज अहिंसा के विषय पर बात करने वाले भी इस बात को नहीं जानते कि अहिंसा की प्रकृति क्या है ? अहिंसा कैसे काम करती है ? जब तक अहिंसा के काम करने की शैली से परिचित नहीं होंगे, अहिंसा का विकास कैसे कर पाएंगे ? अहिंसा कब और कैसे काम करती है, इस विषय में जो लोग प्रश्न करते हैं, उन्होंने भी यह अनुभव किया है कि इस पर जितने शोध की अपेक्षा है, उसका अंश, मात्र भी नहीं हो पाया है । अहिंसा का सबसे ज्यादा विकास हुआ भारतवर्ष में । यहाँ अहिंसा के बारे में काफी चिन्तन हुआ। आज नये सन्दर्भ में यह चिन्तन होना चाहिए कि अहिंसा को कैसे सफल बनाया जाए ?
अहिंसा के प्रश्न पर गंभीरता से चिन्तन करना होगा। केवल अहिंसा पर भाषण और उपदेश देने से कुछ नहीं होगा। हिंसा के विकास के समर्थन में बड़े ही अजीबोगरीब तर्क दिए जाते हैं। जब इन घातक शस्त्रों के निर्माता राष्ट्रों के सामने प्रश्न होता है कि इतने शस्त्रों का विकास क्यों ? उनका कितना सुन्दर तर्क है कि शान्ति-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए शस्त्रों का विकास किया जा रहा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org