SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाचिक अनुशासन के सूत्र रमे' ऐसा लिख दिया। उसे लिखना था-'नागौर में' और लिख दिया 'नागो रमे' ऐसा योग बना कि वह उस रचना के बाद कुछ ही महीनों में पागल हो गया और नंगा घूमने लगा (नागो रमे' का यही अर्थ है)। वाणी और शब्दों का संयोजन और उच्चारण हमारी भावना को प्रभावित करता है। शब्दों की शक्ति, भावना की शक्ति और उच्चारण की शक्ति इन तीनों को समझना बहुत आवश्यक है। यही वाणी-शुद्धि की प्रक्रिया है। प्रलम्ब नाद इसी का एक संकेत है। वाक्शुद्धि का दूसरा उपाय है-सत्य का आलंबन । उच्चारण का विवेक कर लिया, तरंगों को भी समझ लिया, किन्तु उसके पीछे भावना का जो बल है वह यदि असत् है, असत्य है तो सब कुछ बिगड़ जाएगा। यदि हम आज की समस्याओं का विश्लेषण करें तो प्रतीत होगा कि उनके मूल में असत्य का बहुत बड़ा हाथ है। इसलिए सारी समस्याएं जटिल होती जा रही हैं। आप सोचेंगे, असत्य के बिना समाज का व्यवहार ही नहीं चल सकता। सारी राजनीति, कूटनीति के आधार पर चलती है। कूटनीति का आधार है-असत्य । समाज का छोटे से छोटा व्यवहार और बड़े से बड़ा व्यवहार असत्य के आधार पर चलता है। एक आदमी झूठ बोलता है, बच जाता है, सत्य बोलता है, मारा जाता है। जज ने अपराधी से कहा-'तुम न्यायालय में खड़े हो। सच-सच कहना, झूठ मत कहना। अच्छा बताओ, झूठ बोलने से कहां जाओगे और सच बोलने से कहां जाओगे?' ____ 'जज साहब! जानता हूं। झूठ बोलने से नरक में जाऊंगा और सच बोलने से जेल में जाऊंगा।' आज प्रत्येक आदमी के मन में यह आस्था बैठ गई है कि समाज में सच बोलने का अर्थ है--आपदाओं को निमन्त्रण देना, कठिनाइयों में फंसना। जो झूठ बोलने में माहिर होता है वह बड़े से बड़ा अपराध करके भी बच जाता है। जो व्यक्ति वाक्-चतुर होता है, झूठ को छिपाना जानता है, वह सफल हो जाता है। जो सच बोलता है वह बुद्धू होता है, पागल होता है, मूर्ख होता है-यह आज की आस्था है इसी आस्था के कारण सारा व्यवहार गड़बड़ा गया है। हम चाहते हैं कि अन्याय मिटे, अनाचार मिटे, अत्याचार मिटे, ईमानदारी और प्रामाणिकता आये, सत्य का विकास हो। पर यह कैसे हो? मूल को ही काटा जा रहा है। मूल में ही भूल है, फिर यह सब कैसे हो? __ भगवान महावीर ने सत्य का सुन्दर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा-सत्य वही है जहां काया की सरलता है, भावों की सरलता है, वाणी की सरलता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy