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________________ ६२ मैं कुछ होना चाहता हूं है और अविसंवादिता है । अविसंवादिता का अर्थ है- विसंगतियों से परे हो जाना। एक दिन एक बात कहना और दूसरे दिन दूसरी बात कहना - यह विसंवाद है । सत्य वह होता है जो अविसंवादी होता है। दस वर्ष पूर्व जो बात कही वही बात पचास वर्ष बाद कहेगा। वाणी में विसंवादिता नहीं होगी । किन्तु आज भाव भी टेढ़ा है, वचन भी टेढ़ा है और जीवन के पग-पग पर विसंवादिता है । इस स्थिति में वाणी की शक्ति कैसे प्राप्त हो ? वाक्शुद्धि कैसे हो ? जिस व्यक्ति की वाक् -शुद्धि हो जाती है, उसके मुंह से निकली हुई बात को होना ही पड़ता है। वह कथन अन्यथा नहीं होता । वचनसिद्धि का सबसे बड़ा साधन हैं- सत्य । जो सत्यवादी होता है उसके कथन को कोई बदल नहीं सकता। उसके कथन को कोई अन्यथा नहीं कर सकता । उसकी वाणी की तरंगों में, परमाणुओं में इतनी शक्ति आ जाती है कि प्राकृतिक घटना को वैसे ही घटना पड़ता है। एक व्यक्ति में सत्य का, ब्रह्मचर्य का इतना बल होता है कि प्रकृति भी उससे प्रभावित होती है - बादल होते हैं तो बिखर जाते हैं और नहीं हो तो बन जाते हैं। ऋषिराय साधक थे । वे जब भी पदविहार करते आकाश में बादल मंडराने लग जाते। आतप मंद हो जाता। वह होता है। और भी न जाने क्या क्या घटित हो जाता है! सत्य की शक्ति असीम है । परन्तु आज बचपन से ही यह सीख दिया जाता है कि सच बोलोगे तो मारे जाओगे, झूठ बोलोगे तो बच जाओगे । जब जीवन को यह मंत्र मिलता है तब सच को प्रतिष्ठित करने का प्रश्न ही नहीं उठता । बेचारा सत्य कहां, कैसे प्रतिष्ठित हो ? वाणी - शुद्धि का दूसरा उपाय है- सत्यनिष्ठा । जिन लोगों ने सत्य की निष्ठा बनाए रखी, वे विलम्ब से भले ही हो, आगे बढ़े हैं। यदि सत्य के प्रति अटूट निष्ठा होती है तो उसका अच्छा परिणाम अवश्य आता है। प्रश्न है मूल निष्ठा का । वह बनती ही नहीं, बनने से पहले ही मर जाती है । यदि वास्तव में सत्य का प्रयोग हो तो वाणी में भी अपारशक्ति आ जाती है। इससे वचनसिद्धि होती है । काया की शुद्धि जरूरी है । मन की शुद्धि जरूरी है । काया और मन दोनों के बीच में बैठी है हमारी सरस्वती - हमारी वाक् देवी । जब तक वाक्- शुद्धि नहीं होती तब तक काया भी टेढ़ी बनी रहती है । वह अशुद्ध बन जाती है । मन भी अशुद्ध बन जाता है। इसलिए वाक् देवी की, सरस्वती की आराधना साधक के लिए बहुत जरूरी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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