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________________ __ मैं कुछ होना चाहता हूं होता है। यह उच्चारण का एक प्रकार है। उच्चारण अनेक प्रकार के होते हैं-उदात्त, अनुदात्त, स्वरित, ह्रस्व, दीर्घ प्लुत आदि। मंत्रशास्त्र में हस्वोच्चारण का एक प्रकार का लाभ होता है, दीर्घोच्चारण का दूसरे प्रकार का लाभ होता है और प्लुत उच्चारण का भिन्न प्रकार का लाभ होता है। उच्चारण जितना लम्बा होता है, ऊर्जा उसी के अनुपात में निर्मित होती है और मन के साथ उसका संबंध स्थापित होता है। अर्हम् और ओम् का लम्बा उच्चारण होता है। सामवेद में अनेक प्रकार की उच्चारण-पद्धतियों का महत्वपूर्ण उल्लेख है। उच्चारण के आधार पर एक-एक मंत्र की हजार-हजार शाखाएं हो जाती हैं। बहुत सारे लोग जप करते हैं। वे कहते हैं, इतने वर्ष हो गए, जप से कुछ नहीं हुआ। कैसे हो? निष्पत्ति कैसे मिले? जब तक मंत्र-शब्द के उच्चारण का रहस्य हाथ में नहीं आता तब तक मंत्र अर्थवान नहीं होता, शक्तिशाली नहीं बनता। गुरु के बिना उच्चारण-भेद से होने वाले परिवर्तनों को नहीं जानता, वह दूसरों को क्या बता सकता है? एक ही शब्द उच्चारण भेद से पचासों परिणाम ला देता है। ओम् के अनेक प्रकार के उच्चारण हैं। एक प्रकार का उच्चारण एक काम करता है और उसी शब्द का दूसरे प्रकार का उच्चारण दूसरा काम करता है। उसकी प्रतिक्रिया बदल जाएगी। परिणाम बदल जाएगा। भाषा के उच्चारण का बहुत महत्व है। मंत्रशास्त्र में शब्द के उच्चारण को प्राथमिकता दी गयी है। लाभदायी मंत्र भी गलत उच्चारण के कारण अलाभप्रद बन जाता है। प्राचीन जैन साहित्य में उच्चारण के अनेक दोष बतलाए हैं-जं वाइद्ध वच्चामेलियं हीणक्खरियं अच्चक्खरियं पयहीणं जोगहीणं घोसहीणं ..........। मंत्र का उच्चारण करते समय मंत्राक्षरों को कम भी न बोलें, अधिक भी न बोलें एक दूसरे में मिलाकर न बोलें। जहां विराम लेना हो वहां विराम लें। एक पद के दूसरे में न मिलाएं। शब्दों के योग का ध्यान रखें। घोष का पूरा विचार रखें उचित शब्द पर उचित विराम न लेने के कारण अर्थ का अनर्थ हो जाता है। सारे अर्थ का परिवर्तन हो जाता है। जब उच्चारण के सारे दोष मिट जाते हैं तब वार्ण भी शुद्ध होती है। शब्दानुशासन का कथन है-जो शब्द का शुद्ध उच्चारण करत है वह स्वर्ग में चला जाता है, शब्द उसके लिए कामधेनु बन जाता है। दग्धाक्षर की बात बहुत प्रचलित है। यह भी उच्चारण या रचनापद्धति क ही एक दोष है। इससे सारी भावना ही बदल जाती है। जीवन का वृत्त बदल जात है। नागौर शहर में एक सेवक रहता था। वह कविता लिखता था। एक रचना वे अन्त में उसने अपने स्थान का नाम लिखा। संयोगवश लिखते समय उसने 'नार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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