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________________ इन्द्रिय अनुशासन २३ आशाओं पर तुषारापात-सा हो गया। अब क्या कहूं? मेरा मार्गदर्शन करें। मैंने कहा-भले आदमी! इतने क्यों उलझते हो? अध्यात्म को छोड़ दो, तिलांजली दे दो। जैसे सांप केंचुली को छोड़ देता है, वैसे ही तुम अध्यात्म को सदा-सदा के लिए छोड़ दो। उसने कहा-यह सम्भव हो सकता है? मैं इसे छोड़ नहीं सकता। मैं पदार्थों के सेवन से ऊब कर इस क्षेत्र में आया। यदि इसको भी छोड़ दूं तो फिर ‘णो हव्वाए णो पाराए'-न इधर का रहा न उधर का रहा। पदार्थों से भी मुझे अरुचि है। पदार्थों ने मुझे प्रताड़ित कर रखा है। उनसे मानसिक अशांति ही मिली है। उस अशांति से तर्जित होकर शान्ति की खोज के लिए इस क्षेत्र में पदार्पण किया। यहां भी शांति नहीं मिली। फिर पदार्थ जगत् में जाकर क्या करूं? वहां भी अशांति ही अशांति है। अब अध्यात्म को कैसे छोडूं? छोड़कर कहां जाऊं? _____ मैंने कहा-तुम अभी समझे नहीं। तुमने अध्यात्म को भी पूरा नहीं समझा है। तुमने न उत्तराध्ययन को समझा है, न महाभारत को समझा है और न मनोनुशासनम् को समझा है। समझना बहुत कठिन होता है। जब तक अनुभव नहीं होता, परम्परा नहीं होती, बात समझ में नहीं आती। शिविर में ध्यान-साधना करने वाला एक साधक बता रहा था कि वह दो वर्षों से ध्यान का अभ्यास कर रहा है, पर उससे कुछ भी हस्तगत नहीं हुआ। शिविर में दस दिनों के क्रम से गुजरा और अनुभव होने लगा कि कुछ हो रहा है। इसका निष्कर्ष है कि बात अपने आप समझ में नहीं आती। जब तक चाबी हाथ नहीं लगती, ताला नहीं खुलता। मैंने आयुर्वेद का एक ग्रंथ पढ़ा। उसमें पानी को ठण्डा करने की कुछ विधियां बतलाई गई हैं। उनमें एक विधि है-वस्त्रोद्धरण । वस्त्र के द्वारा पानी को ठंडा किया जा सकता है। पानी को वस्त्र से छानने से पानी ठण्डा होता है। मैंने पढ़ा तो बहुत आश्चर्य हुआ कि अनुवादक ने कितना गलत अनुवाद किया है। अनुवाद गलत इसलिए हुआ कि अनुवादक को इस विधि का अनुभव नहीं था। हम मुनि इस विधि से बहुत परीचित हैं। जब ग्रीष्म ऋतु में यत्र-तत्र हमें गरम पानी प्राप्त होता है तब इस विधि से हम उसे ठंडा करते हैं। ठंडा भी इतना हो जाता है कि मानो बर्फ का पानी हो। दस-बीस बार छानने मात्र से गरम-पानी ठंडा नहीं होता। वस्त्रोद्धरण की विधि यह है। गरम पानी का पात्र पड़ा है। पानी में कपड़ा डाला। उसको द्विपट या चतुःपट वाला किया। उसके दोनों सिरे पकड़कर ऊपर उठाया, फिर पानी में डाला, फिर ऊपर उठाया। इस प्रकार करते-करते पानी ठण्डा हो जाता है। पानी कपड़े के साथ ऊपर उठता है। हवा लगती है। पानी ठंडा हो जाता है। इसी प्रकार गरम पानी का पात्र ऊपर रख दिया। उसमें एक कपड़ा डालकर, कपड़े को नीचे लटका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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