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________________ मैं कुछ होना चाहता हूं दिया। नीचे एक खाली पात्र रख लिया। धीरे-धीरे उस कपड़े के माध्यम से बून्द-बून्द कर पानी नीचे के पात्र में आता रहेगा। कपड़े को हवा लगेगी। और ऊपर से नीचे आते-आते पानी ठंडा हो जाएगा। यह है-वस्त्रोद्धरण विधि। __ कहने वाला कितना ही ज्ञानी हो, सर्वज्ञ हो, पर सारा दायित्व होता है समझने वाले पर कि वह सर्वज्ञ द्वारा कथित तथ्यों को कितनी गहराई से समझ पाया है। बहुत सारे लोग कहते हैं-गीता भगवान कृष्ण की वाणी है, हम उसे समझते हैं। धम्मपद भगवान बुद्ध की वाणी है, हम उसे समझते हैं। उत्तराध्ययन भगवान महावीर की वाणी है, हम उसे समझते हैं। भगवान कृष्ण हो, भगवान बुद्ध हो, भगवान महावीर हो कोई भी हो। उनसे हमें कोई मतलब नहीं है। हमें देखना है कि उन वचनों को समझने वाले कितनी गहराई से उन वचनों को समझते हैं। आज वे शब्द पूरे समझ में नहीं आते तो भला उसके नीचे छिपा सूक्ष्म अर्थ कैसे समझ में आ सकता है? न जाने कितने गलत अर्थ किए जा रहे हैं! अध्यात्म के क्षेत्र में भी यह त्रुटि चल रही है। इसलिए कहने वाले कहते हैं, अध्यात्म नीरसता पैदा करता है। अध्यात्म जीवन को नीरस नहीं बनाता। अध्यात्म ही एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन को अनन्त रसायन बनाने में समर्थ है। अध्यात्म के सिवाय कोई प्रक्रिया ऐसी नहीं है जो जीवन को अनन्त रसायन बना सके। पदार्थ के सारे रस, एक समय मात्र के लिए रस होते हैं, समय बीतने के बाद वे रसहीन हो जाते हैं। गर्मी का मौसम। चटपट भोजन मिला, आदमी ने उसे स्वाद से खाया। कुछ ही समय पश्चात् प्यास लगी। पानी का पहला ग्लास पिया। लगा कि पानी से बढ़कर अमृत क्या हो सकता है! पानी का दूसरा ग्लास पिया। प्यास कम हो गई। पानी का मूल्य कम हो गया। पानी का तीसरा ग्लास पिया। प्यास बुझ गई। पानी का चौथा ग्लास पिया तब लगा कि पानी तो निकम्मी वस्तु है। उससे पेट क्यों भरा जाए? अब पानी का ग्लास सामने आता है तो लगता है क्यों ले आया पानी? प्यास के समय पहले ग्लास के पानी में जो रस था, वह अन्त तक नहीं रहा। जैसे-जैसे प्यास बुझती है, पानी नीरस लगने लगता है। प्रत्येक पदार्थ की यही प्रकृति है। पहले उसमें बहुत रस लगता है। जैसे-जैसे समय बीतता है, उसका रस चुकता जाता है। केवल भोजन, पानी का ही प्रश्न नहीं है, कपड़े आदि सभी पदार्थों की यही प्रकृति है। यदि हम उस प्रकृति का आसूत्र विश्लेषण करें तो ज्ञात होगा कि पहली बार पदार्थ जो आनन्द देता है, फिर वह आनन्द नहीं मिलता, कभी नहीं मिलता। फिर चाहे वह विवाह हो. किसी का योग हो या किसी का सम्बन्ध हो। दो मित्रों को तोड़ने या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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