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__ मैं कुछ होना चाहता हूं सारा ज्ञान और क्रिया का संचालन इन नाड़ियों के द्वारा होता है। नाड़ी-संस्थान कमजोर हो जाता है तो सारा संतुलन गड़बड़ा जाता है।
जो व्यक्ति अपने आवेशों, आवेगों पर नियन्त्रण करना नहीं जानता. धीमे-धीमे उसका नाडी संस्थान कमजोर होता चला जाता है। एक बार गुस्सा आने का मतलब है कि आपके नाड़ी-संस्थान पर एक तेज धक्का दे दिया। अब बार-बार धक्के मारते ही चले जाएंगे बेचारा कब तक सहेगा। बहुत सहता आया है। इतना सहन करता है कि आपका लड़का भी इतना सहन नहीं करता, आपकी पत्नी भी इतना सहन नहीं करती, वह भी आपको ठुकरा देती है। पर बेचारा नाड़ी-संस्थान तो ऐसा है कि मौनभाव से आपके धक्कों को सहन करता जाता है। आखिर जब देखता है कि बड़ा परेशान कर रहा है तो टूटना शुरू कर देता है। तब आदमी अंसतुलित होता है, विक्षिप्त होता है और होते-होते आदमी कभी अर्द्ध-पागल की स्थिति में और कभी पूरे पागल की स्थिति में चला जाता है।
____ मानसिक असंतुलन के ये पांच कारण हमारे सामने हैं। हम चाहते हैं मानसिक संतुलन बना रहे। हम इसलिए चाहते हैं कि मन स्वस्थ रहे। मन शान्ति में रहे। उसका यह सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग है-शरीर-प्रेक्षा, शरीर को देखना। इससे नाड़ी-संस्थान दृढ़ होता है और कुछ रसायनों की पूर्ति भी करता है। आपको ज्ञात होना चाहिए कि कुछ विटामिन हमारा शरीर पैदा करता है। सब बाहर से ही हम नहीं लेते हैं। हम भीतर से भी लेते हैं। सूर्य का ताप लगता है और विटामिन 'डी' अपने आप आ जाता है। इसका सबसे अच्छा स्रोत है-सूर्य का ताप। और भी बहुत सारे रसायन, प्रोटीन हमारा शरीर पैदा करता है पर करेगा तब जब हम अनावेग की स्थिति में रहेंगे। यह ध्यान का प्रयोग, मानसिक संतुलन का प्रयोग केवल मोक्ष पाने के लिए ही नहीं है, वर्तमान जीवन को सुख से जीने के लिए भी है।
जिस धर्म के द्वारा, साधना के द्वारा वर्तमान की समस्याओं का समाधान नहीं मिलता वह शायद हमारे लिए बहुत हितकर नहीं होती और बहुत उपादेय भी नहीं होती। हम अध्यात्म का, धर्म का पुनर्मूल्यांकन करें और उसके द्वारा अपने जीवनगत वर्तमान की समस्याओं का समाधान करें।
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