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________________ १३९ मैं मानसिक संतुलन चाहता हूं होकर पानी मत पीओ। किसी से बात करनी हो तो टेढ़े होकर मत करो। रोटी खानी हो तो टेढ़े होकर मत खाओ। श्वास भी लेना हो तो टेढ़े होकर मत लो। सम रहो, जिससे कि संतुलन बराबर बना रहे। टेढ़े हुए तो सारी क्रियाओं में अन्तर आने लग जाएगा। नाड़ी-संस्थान की दुर्बलता, पृष्ठरज्जु की दुर्बलता और मस्तिष्क की दुर्बलता-ये सब असंतुलन के कारण बन जाते हैं। आजकल एक चिकित्सा पद्धति चल रही है-ओष्टियोपैथी। इस चिकित्सा में और कुछ नहीं किया जाता, केवल स्पाइनल कॉर्ड पर कुछ प्रेशर दिया जाता है। सारे रोगों की चिकित्सा करते हैं। यहां रोगों की जड़ है। यहीं से सारे शरीर में नर्वस् जाते हैं, फैलते हैं। तंतुओं का, स्नायुओं का और धमनियों का जाल बिछा हुआ है, सब यहीं से होकर गया है। मूल यही है। यहीं से सारे अलग-अलग होते हैं। यह हमारा केन्द्रीय नाड़ी-संस्थान है और इसके दोनों ओर अनुकम्पी और परानुकम्पी नाड़ी-संस्थान हैं। यहीं से सारा का सारा संचालन हो रहा है। जब नाड़ी-संस्थान ही दुर्बल हो जाता है तो फिर संतुलन नहीं आएगा। ध्यान होगा ही नहीं. करे भी क्या? ध्यान तो तभी हो सकता है जब नाडी-संस्थान मजबूत होता है। कोई आदमी भारी-भरकम है-आपको लगेगा कि वह बड़ा हट्टा-कट्टा है, बड़ा स्वस्थ है। यदि शरीर में मांस कम है तो लगेगा कि यह तो थका, पतला-दुबला आदमी है। आप उनको कमजोर मान लेगें और उस भारी-भरकम को शक्तिशाली मान लेगें। यह मानना सही नहीं होगा। 'तेजो यस्य विराजते स बलवान् स्थूलेषु क: प्रत्यय:'-जिसमें तेज है वह बलवान होता है, स्थूल में कोई विश्वास नहीं होता। मांस का काम तो बहुत छोटा । काम है। हमारे शरीर में मूल है-नाड़ी-संस्थान । जीवन का अर्थ है-नाड़ी-संस्थान की सक्रियता। दो ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली हैं-एक है नाड़ी-संस्थान और दूसरा है ग्रन्थि-संस्थान । ये ही सारा प्रकाश फैला रहे हैं। सब कुछ करा रहे हैं। मांस कोई बड़ी बात नहीं है। दूसरी धातुओं में उतनी ताकत नहीं है। एक आदमी को ज्ञान हो रहा है कि अंगली हिल रही है, थोड़ा-सा छुआ पता चल गया। किस आधार पर यह ज्ञान हुआ? जितने सेसेंशन होते हैं, जितने संवेदन होते हैं, वे सब नाड़ी-संस्थान के स्तर पर होते हैं। दो प्रकार के नर्वस होते हैं-मोटर नर्वस् और सेंसरी नर्वस् । सेंसरी नर्व के द्वारा हमें ज्ञान होता है और मोटर नर्व के द्वारा क्रिया होती है। किसी अंगुली से कुछ छुआ तो सेंसरी नर्व से पता चल गया कि कोई ठंडी चीज छुई है और अंगुली हिलाने की जरूरत पड़ी कि उस चीज को हटा देना है तो हमारे क्रियातंतु काम करने लगे। उसको हटा दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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