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________________ १३८ मैं कुछ होना चाहता हूं नाड़ियां-इन सबको अलग-अलग प्रकार के रसायन और तत्त्व चाहिए। अलग-अलग जरूरत है। कुछ लोग इतना नमक खाते हैं, ऊपर से डालते ही चले जाते हैं। अरे! इतना नमक खाते हो, जीभ को भी अच्छा लगता होगा पर बेचारे गुर्दे से भी सलाह तो करो कि तुम्हें कैसा लगता है। कितनी परेशानी है गुर्दे को। अधिक नमक खाने वाले गर्दे की, किडनी की बीमारी से परेशान न हो, यह कैसे संभव होगा? क्योंकि शरीर को तो इतना नमक चाहिए नहीं और जो विजातीय है उसे निकालना पड़ता है बेचारे गुर्दे को। छोटे से गुर्दे के पास नब्बे लाख छलनियां हैं। सारी छलनियों से काम लेना पड़ता है, फिर भी खाया हुआ सारा विजातीय तत्त्व निकालने में बेचारा परेशान हो जाता है। इतनी छलनियां चलती हैं, किसी चक्की के पास जो आटा पीसने वाली है इतनी छलनियां नहीं मिलतीं। पर आदमी निगलता जाता है, डालता जाता है पेट में। पर कभी गुर्दे की परेशानी का अनुभव ही नहीं करता। लीवर की परेशानी का अनुभव ही नहीं करता कि लीवर जितना पाचक रस डालेगी उतना ही तो छोड़ेगी। अवशेष गया हुआ पचेगा कैसे-यह पता ही नहीं है। चीनी खाते हैं। इतनी चीनी खाते हैं, खाने में अच्छी लगती है पर कभी आंतों से भी पूछो, पक्वाशय से भी पूछो कि कैसा होता है? इतनी अम्लता बढ़ जाती है कि सारी परेशानियां पैदा करती हैं। चीनी खाने में मीठी लगती है और परिणाम क्या होता है, खटाई बढ़ती है। ज्यादा चीनी खाने वाले को खट्टी डकारें आती हैं। अपच होता है। आंवला खट्टा लगता है और विपाक मीठा होता है। भोजन का संतुलन होना चाहिए। बहुत बड़ी समस्या है, इस बारे में ध्यान नहीं देते और भीतर में मिथ्या आहार के कारण बहुत दूषित रसायन बनते हैं और वे मनुष्य को फिर चिड़चिड़ा बनाते हैं या ज्यादा गुस्सैल बनाते हैं, या बात-बात में उत्तेजित कर देते हैं या ज्यादा कामवासना को जगाते हैं। इन सारी विकृतियों को पैदा करने में भोजन का बहुत बड़ा हाथ है। मानसिक असंतुलन का चौथा कारण है-असंतुलित भोजन। पांचवां कारण है-नाड़ी-संस्थान की दुर्बलता। नाड़ी-संस्थान के दो मुख्य अंग हैं-एक मस्तिष्क और दूसरा सुषुम्ना का सारा हिस्सा। सुषुम्ना-शीर्ष और सुषुम्ना-स्पाइनल कॉर्ड (Spinal Cord)। ये नाड़ी संस्थान के दो महत्त्वपूर्ण अंग हैं। जिसका स्पाइनल कॉर्ड या पृष्ठरज्जु दूषित होता है, उसका संतुलन बिगड़ जाता है। आप लोगों को कठिनाई होती है सीधे बैठने में। अटपटा लगता है। कई बार कहा जाता है कि पृष्ठरज्जु को सीधा रखें । अरे ! इसमें आपका कितना हित छिपा हुआ है। पृष्ठरज्जु सीधा रहता है तो आप शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों से बच जाते हैं। बैठने का यह ढंग है कि या तो लोग झुककर बैठेंगे या टेढ़े बैठेंगे। आयुर्वेद का शास्त्र-चरक कहता है कि पानी पीओ तो समकाय-सीधे रहो। टेढ़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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