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बोला- मेरे पास जो अन्तिम साधन था मृत्यु का, उसे तो वह स्वीकार ही नहीं कर रहा है, कोई डर ही नहीं रहा है। भला कहीं न डरने वाले को कैसे डराया जाये ? दुनिया बड़ी अजीब है कि डरने वाले को ही डराते हैं । जो नहीं डरता उसे डराने की ताकत किसी सत्ता में नहीं है, किसी शक्ति में नहीं है। दुनिया में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो अभय को डरा सके । सब डरने वाले को डराते हैं । जो डरते हैं उन्हें. पुलिस भी डराती है। दूसरा आदमी भी डराता है, और क्या, चूहा भी डरा देता है । वह भी डरने वाले को बहुत डराता है । थोड़ा-सा खटका होता है तो नींद हराम हो जाती है, बड़ी अजीब स्थिति होती है । पर सब डराते हैं डरने वाले को । जो अभय बन गया, भयमुक्त बन गया, उसे डराने की किसी में भी ताकत नहीं होती । सिकन्दर परेशान हो गया और बोला- अच्छा महाराज! अभिवादन; अब जा रहा हूं । जिस व्यक्ति को बन्धन और वध का भय नहीं होता वह कभी भी बाहरी नियंत्रण से नियंत्रित नहीं होता। लोग कहते हैं कि नियन्त्रण पर नियंत्रण आ रहे हैं। कानून पर कानून और इतने कानून की कानूनों का अम्बार लग गया। आदमी को पता ही नहीं लगता कि यह कानून है। अतिक्रमण हो जाता है तो न्यायालय में उपस्थित होना पड़ता है. । वह कहता है कि मुझे इस बात का पता ही नहीं था । न्यायालय यह नहीं कहेगा कि तुम्हें पता था कि नहीं था । कानून बनाने वाले बनाते चले जाते हैं और पकड़ने वाले पकड़ते चले जाते हैं। यह क्यों हो रहा है ऐसा? डर के कारण हो रहा है। भय के कारण हो रहा है। बुराई करता है, मन में डरता है बुराई तो कर ली पर कहीं पकड़ा न जाऊं। यह भय ही तो पकड़ा रहा है उसको । जंगल में जब शेर की दहाड़ होती है, बेचारे हिरण व अन्य पशु भयभीत हो जाते हैं, स्तब्ध हो जाते हैं, चलने की शक्ति कम हो जाती है । अगर वे दौड़ते जाएं तो सिंह कैसे पकड़ेगा उनको ? पर इतने भयभीत हो जाते हैं कि सिंह को दौड़ने की जरूरत नहीं, अपने आप वे पशु उसके मुंह में आ जाते हैं। समूचे समाज में व्याप्त भय ही इस नियन्त्रण को जटिल से जटिल बनाता जा रहा है। इसका एक समाधान है। वह है - आत्मानुशासन का विकास। हमारे भीतर से अनुशासन जागे । अनुशासन जागने का अर्थ है कि वहां वध नहीं है, बन्धन नहीं है। वहां दो प्रेरणाएं काम कर रही हैं। एक संयम की प्रेरणा और दूसरी तपस्या की प्रेरणा । ये दो प्रेरणाएं प्रेरित करती हैं और आत्मानुशासन प्रगट हो जाता है । शरीर का अनुशासन, श्वास का अनुशासन, प्राण का अनुशासन, वाणी का अनुशासन और मन का अनुशासन - ये पांच अनुशासन इकट्ठे होते हैं तो फिर एक बनता है - आत्मानुशासन । आत्मानुशासन के ये पांच स्तंभ हैं, पांच आधार हैं. इन पांच अनुशासनों को उपलब्ध हुए बिना कोई भी व्यक्ति आत्मानुशासन को उपलब्ध नहीं हो सकता ।
मैं कुछ
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