SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैं आत्मानुशासन चाहता हूं १२५ आत्मानुशासी व्यक्ति के लिए, आत्मानुशासन चाहने वाले व्यक्ति के लिए सबसे पहले शरीर को अनुशासित करना जरूरी होता है। वह होता है-संयम के द्वारा। उसे काय-सिद्धि करनी होती है, काया को साधना होता है। हाथ का संयम, पैर का संयम-ये दो बड़े संयम हैं शरीर के। पैर उठता है उसी दिशा में जिस दिशा में हम जाना चाहते हैं। विपरीत दिशा में एक चरण भी आगे नहीं बढ़ेगा। हाथ उठेगा उसी दिशा में जिस दिशा में हाथ को आगे बढ़ाना है। गलत दिशा में हाथ आगे नहीं बढ़ेगा। हाथ का संयम, पैर का संयम, खड़े रहने का अभ्यास, बैठने का अभ्यास। बड़ा कठिन है खड़ा रहना, बड़ा कठिन है बैठना। बैठने का अभ्यास क्या सरल है? बड़ा कठिन है। ध्यान करते समय एक घण्टा, पौन घण्टा एक आसन में बैठना होता है। किसी का पैर सो जाता है, किसी का हाथ सो जाता है, किसी का शरीर सो जाता है। बड़ी कठिनाई का अनुभव होता है। और जब बदलने लगते हैं तो कभी एक पैर बदलो, कभी दूसरा और बदलते बदलते आसपास के भाव बदलने लग जाते हैं। बड़ा कठिन होता है शरीर का अनुशासन । शरीर पर अनुशासन करने वाला व्यक्ति तीन घंटा तक एकासन में बैठ सकता है, तीन दिन और तीन महीने और तीन वर्ष बैठ सकता है। शरीर पर अनुशासन करने वाला व्यक्ति तीन घंटे खड़ा रह सकता है, तीन दिन, तीन महीने और तीन वर्ष तक खड़ा रह सकता है। कर्नाटक में बाहुबलि की प्रतिमा है। वह विश्व में सबसे बड़ी प्रतिमा है। सतावन फुट की वह पहाड़ में उत्कीर्ण की गई है, कुरेदी गई है। विलक्षण प्रतिमा है। हम लोगों ने आंखों से देखा है। उसका सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक समारोह मनाया गया। बाहुबलि खड़े हैं-कायोत्सर्ग की मुद्रा में। कब से खड़े हैं? प्रतिमा के रूप में तो एक हजार वर्ष से खड़े हैं किन्तु साधना-काल में भी एक वर्ष तक खड़े रहे। मुनि बन गए और कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े हो गए। खड़े रहे, खड़े रहे। दिन बीते, महीने बीते, पूरा वर्ष बीत गया। पूरे वर्ष तक अविचल मुद्रा में खड़े रहे। कितना कठिन है यह शरीर का अनुशासन । व्यक्ति कांप उठता है। एक घण्टा भी यदि खड़ा रहना हो तो बैठते समय शिकायत होती है कि पैर सो गया और खड़े रहते शिकायत रहेगी कि पैर थम्भा बन गया। सारा रक्त नीचे उतर गया और पैर इतना स्तब्ध रह गया कि पैर में चलने कि क्षमता ही नहीं रही। किन्तु मनुष्य के भीतर कितनी क्षमता है उसका अनुमान नहीं किया जा सकता। मानवीय क्षमताओं के बारे में हमारी कल्पना ही नहीं होती। इतनी अज्ञात क्षमताएं हमारे मस्तिष्क में भरी पड़ी हैं कि मस्तिष्क का नब्बे प्रतिशत भाग तो काम ही नहीं आ रहा है। यह क्षमता का भण्डार पड़ा का पड़ा रह जाता है और शेष बचे दस प्रतिशत को काम में लेने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy