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________________ मैं आत्मानुशासन चाहता हूं १२३ त्रिआयामी और त्रिसूत्री हमारी आस्था होनी चाहिए: १. क्षमता २. समाप्त किया जा सकता है या विकास किया जा सकता है। ३. समाप्ति और विकास अभ्यास के द्वारा किये जा सकते हैं। ये तीन सूत्र हैं। इन पर आस्था जमे तो आत्मानुशासन भी दुर्लभ नहीं है। आत्मानुशासन तब प्रकट होगा जब भीतर में जमे हुए संस्कार उखड़ेंगे। उन संस्कारों को उखाड़ने की हमारी क्षमता है। आत्मानुशासन को विकसित करने की क्षमता हमारे भीतर विद्यमान है। वह किया जा सकता है। वह असंभव या अशक्य अनुष्ठान नहीं है और उसे अभ्यास के द्वारा किया जा सकता है। अभ्यास के लिए हमें मार्ग खोजना होगा। उसके सूत्र उपलब्ध करने होंगे। उसके सूत्र हैं-संयम और तपस्या। एक आरोपित नियन्त्रण होता है, जो बन्धन और वध के द्वारा किया जाता है। दण्ड का नियन्त्रण, दण्ड का अनुशासन । उसके भी दो सूत्र हैं-बन्धन और वध । या तो बांधा जाएगा, पीटा जाएगा या मारा जाएगा। इसके सिवास उसके पास कोई शक्ति नहीं है। दण्ड के पास दो शक्तियां हैं। किसी आदमी को बांध दो, पीटो, मार डालो। जब तक वह बन्धन और वध की बात रहती है तब तक आत्मानुशासन का विकास नहीं हो सकता। जिस व्यक्ति में आत्मानुशासन का विकास हो जाता है वह बंधन और वध-दोनों भयों से मुक्त होकर सर्वतो अभय हो जाता है। सम्राट सिकन्दर ने एक दिगम्बर मुनि से कहा-तुम मेरे राज्य में चलो। उसने कहा-नहीं चलूंगा। सिकन्दर देखता रह गया। सिकन्दर की बात को टालने की क्षमता बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं में नहीं है। सिकन्दर का संकेत ही सबको प्रकम्पित कर देता है, उस स्थिति में एक अकिंचन साधु कह रहा है कि मैं नहीं जाऊंगा। बड़ा अजीब-सा लगा, देखता रह गया। बोला-साधु तुम नहीं जानते मैं कौन हूं। सम्राट सिकन्दर हूं। तुम्हें नहीं पता कि मेरे आदेश के अतिक्रमण का क्या परिणाम होता है। जानते हो? साधु ने कहा-'जानता हूं, फिर भी बता दो क्या परिणाम होता है।' सिकन्दर ने कहा-यह है तलवार । परिणाम होगा, तुम मारे जाओगे। साधु ने कहा-किसको डराते हो? यह मौत का भय तो कभी समाप्त हो गया। मौत में मुझे मारने की क्षमता नहीं है। 'मौत से मरता नहीं मैं, मौत मुझसे मर चुकी है।' किसको डराते हो तुम? मौत तो बेचारी मुझसे डरती है। तुम मुझे मौत से डराते हो? क्या मौत से मुझे डराना चाहते हो? मौत तो मुझसे डर चुकी है। मुझे क्या मारना चाहोगे? साधु की बात सुनी। सिकन्दर के हाथ से तलवार छूट गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003080
Book TitleMain Kuch Hona Chahta Hu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size7 MB
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