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मैं कुछ होना चाहता हूं
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समस्या होती है और उसे पहाड़ बनाकर सारे दिन और रात दुःख भोगने लग जाता है । नींद हराम, भूख हराम । ऐसा लगता है, मानो सब कुछ खो गया है। छोटी बात को बड़ी बना लेता है। दुनिया में बहुत सारी घटनाएं बड़ी नहीं होतीं। हम अपनी चेतना की दुर्बलता के द्वारा छोटी बात को बहुत बड़ी बना लेते हैं और बहुत तूल दे देते हैं। तूल ही दुनिया में ज्यादा चलता है । वास्तव में देखा जाए तो घटना बड़ी होती ही नहीं है । इन छोटी-छोटी बातों को लेकर परस्पर लड़ाइयां, झगड़े, कलह, संघर्ष की ज्वालाएं, चिनगारियां और चारों तरफ स्फुलिंग उछलते हैं। कोई बड़ी बात नहीं होती, किन्तु ये सब चेतना की दुर्बलता के कारण होते हैं और ध्यान की अवस्था में गए बिना, कषायों और आवेगों को शान्त किए बिना दुर्बलता कभी समाप्त नहीं होती । यह वह चेतना है जो हर समस्या को पहाड़ बना देती है और रोने की स्थिति पैदा कर देती है ।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आदमी दुःख में से सुख निकाल देता है और सुख की स्थिति से भी दुःख निकाल देता है। आदमी सुख में दुःख खोज लेता है। आशा में निराशा खोज लेता है और उत्साह में से अनुत्साह खोज लेता है। यदि हम ध्यान से सर्वेक्षण करें तो हमें पता चलेगा कि दुःख में से सुख खोजने वाले लोग बिरले हैं और सुख में से दुःख 'खोजने वाले लोग असीम हैं, असंख्य हैं। हर घटना में से दुःख 'खोज लेते हैं I जैसे मक्खी अच्छी-अच्छी चीज को छोड़कर मल को खोज लेती है, वैसे ही लोग ऐसी कमजोरी को पकड़ लेते हैं । अंगुली सीधी कमजोरी पर जाती है, दोष पर जाती है और सारा ध्यान उसी में लग जाता है। हर जगह कृष्ण पक्ष को खोजने में लग जाते हैं । शुक्ल पक्ष कभी सामने नहीं आता, अच्छाई की ओर ध्यान नहीं जाता। ध्यान सीधा बुराई की ओर जाता है । एक प्रकार की चेतना है, रोने वाली चेतना है ।
दूसरी चेतना प्रमोद की भावना वाली है, जिसमें प्रमोद है, हर्ष है । दूसरे की विशेषता देखी तो प्रमोद की भावना जागी, हर्ष की भावना जागी। कभी कोई हीनता का अनुभव नहीं हुआ और अपने पुरुषार्थ की ओर ही ध्यान गया । यह हंसने वाली चेतना है। समस्या में से समाधान खोजने वाली चेतना या दुःख से सुख खोजने वाली चेतना- - यह चेतना का दूसरा कोण है । ऐसे लोग भी बहुत मिलते हैं जो इस चेतना का विकास कर लेते हैं और निरन्तर सुख में रहते हैं, दुःख का अनुभव नहीं करते । अज्ञानी मनुष्य के लिए, पहली प्रकार की चेतना वाले आदमी के लिए यह संसार-समुद्र जहर से भरा हुआ है और दूसरी प्रकार की चेतना वाले मनुष्य के लिए यह संसार - समुद्र अमृत से भरा हुआ है । अमृत ही अमृत है उसके लिए ।
तीसरे प्रकार की चेतना पूर्णता की दिशा में प्रस्थान करने वाली चेतना है। वह अपूर्ण से पूर्ण की दिशा में प्रस्थान करती है । कहीं भी अपूर्णता है - परिश्रम
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