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कहा
होता है, हर समस्या में से समाधान निकाल लेता है और प्रसन्नता का अनुभव करता है । तीसरा कोण है- जो पूर्णता की दिशा में प्रस्थान करता है, जहां परम पुरुषार्थ जाग जाता है, परम प्रज्वलन और परमज्योति प्रस्फुटित हो जाती है । यह हमारा तीसरा कोण है। एक कहानी के द्वारा इस बात को स्पष्ट करना चाहता हूंतीन भाई थे। मां ने एक बेटे से कहा- जाओ, बाजार से तेल ले आओ । शीशी लेकर गया, तेल भरा, घर की ओर रवाना हुआ। अकस्मात् ऐसा हुआ कि शीशी हाथ से गिरी, कांच की थी, फूट गई। सारा तेल बिखर गया। अब क्या होगा ? मां उलाहना देगी। रोता हुआ घर पहुंचा और रुंआसे स्वर में मां से बोला- 'शीशी गिर गई, तेल भी गया और पैसे भी गए ।' वह रोने लग गया। मां ने दूसरे लड़के से जाओ । तेल जरूरी है तेल ले आओ। वह गया, तेल भरा । आने लगा । कोई आकस्मिक घटनाएं ऐसी होती हैं कि जिनकी व्याख्या करना कठिन होता है । ऐसी ही कोई आकस्मिक घटना घटी कि उसके हाथ से शीशी गिर गई। पर इतना हुआ कि शीशी फूटी नहीं, तेल बिखर गया। पूरा नहीं बिखरा, कुछ बिखरा । शीशी उठाई। उसने बड़ी संतोष की सांस ली। दौड़ा-दौड़ा आया और मां से बोला- देखो मां ! कैसी घटना घटी ? कितनी खुशी की बात है कि शीशी गिरी किन्तु फूटी नहीं । तेल बिखरा पर पूरा नहीं बिखरा । आधा बच गया । वह प्रसन्नता से उछलने लगा । बड़ी प्रसन्नता का अनुभव किया। मां ने कहा- काम पूरा नहीं हुआ । तेल और चाहिए। इतने से काम नहीं होगा। अब मां ने तीसरे लड़के से कहा- अब तुम जाओ । ऐसा मत करना जैसा इन्होंने किया है। तेल लाना है। उसने भी तेल भरा, आने लगा और उसके साथ भी वही बीता । शीशी गिर गई फूटी नहीं, पूरा का पूरा तेल खाली हो गया। ऐसी औंधी पड़ी कि तेल गिर गया। उसने सोचा बड़ी विचित्र बात है। मां ने तेल लाने के लिए कहा था, पर यह तो बिखर गया । उसने संकल्प किया- जब तक शीशी पूरी नहीं भर लूंगा तब तक घर नहीं जाऊंगा । वहीं से गया बाजार । श्रम का काम खोजा । श्रम किया । सांझ होते-होते पैसे कमा लिये। बाजार गया। तेल खरीदा। पूरी शीशी भरी और मां के पास पहुंचा। बोला- यह लो तेल । इतना समय ? बोला- इतना समय ज्योति को प्रज्वलित करने में लगा । मैंने ज्योति जलाई है, उसमें इतना समय लगा है।
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मैं
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कुछ
होना चाहता हूं
हमारी चेतना के भी तीन कोण होते हैं। एक रोने वाली चेतना, एक हंसने वाली चेतना, प्रसन्नता का अनुभव करने वाली चेतना और एक पूर्णता की दिशा में प्रस्थान करने वाली चेतना । जो व्यक्ति चेतना की गहराई में नहीं जाता, ध्यान का अनुभव नहीं करता वह व्यक्ति रोने की स्थिति में रहता है । थोड़ी-सी समस्या पैदा होती है- अब क्या होगा? बात तो छोटी-सी होती है । राई जितनी
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