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मैं मनुष्य हूं (१)
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जाती है, दूसरी भी सूख जाती है, तीसरी भी सूख जाती है। पृथ्वी के ताप में और रेत में बूंदे सूखती चली जाती हैं। एक होता है धारापात । धारापात का अर्थ होता है - प्रवाह । धारा बहने लग जाती है और नाले का, नदी का बड़ा रूप ले लेती है । बिन्दुपात से शक्ति का विकास नहीं होता । शक्ति का विकास धारापात से होता है । बिन्दुपात में निरन्तरता नहीं होती और धारापात में निरन्तरता होती है । बिन्दुपात में अन्तराल आ जाता है । अन्तराल का अर्थ है - काल का व्यवधान । 'काल: पिबति तद्रसं'–काल उसके रस को पी जाता है। जो रस होता था, बीच में समय, अन्तराल आ गया और पहले को काल पी गया, दूसरे को भी पी गया। जहां निरन्तरता होती है, धारापात होता है वहां काल उसके रस को पीता नहीं, किन्तु आगे बढ़ा देता है ।
निरन्तरता का बहुत मूल्य है । निरन्तर अनुभव करना। जिस व्यक्ति ने श्वास का निरन्तर अनुभव करना सीख लिया, उसने शरीरबल, मनोबल और वाक्बल - वाणी के बल को विकसित करने का एक बहुत बड़ा रहस्य हस्तगत कर दिया ।
आज सबसे बड़ी कमी यही आई है कि लोग निरन्तरता की बात को भूल गये, शक्ति के निरन्तर प्रवाह की बात को भूल गये । आज यहां के एक अधिकारी ने बताया कि वे एक वर्ष के खेलकूद कोर्स को विदेश में पूरा करके आये हैं। उन्होंने बड़े आश्चर्य के साथ कहा कि अब खेलकूद के साथ पश्चिम के लोगों ने योग को और जोड़ दिया है। बड़ी विचित्र बात है! अब खेलकूद का प्रशिक्षण लेने भी बाहर जाना पड़ता है और योग भी बाहर से सीखना पड़ता है। योग यहां से निर्यात हुआ और फिर यहां आयात करने की जरूरत पड़ गई। एक ही कारण है कि निरन्तरता किसी बात में नहीं रही, किसी बात में एकाग्रता नहीं रही। सब कुछ व्यवधान और व्यवधान । छूटा हुआ, छूटा हुआ; टूटा हुआ, टूटा हुआ। ऐसा लगता है जैसे हम भूल ही गये । प्रवाह को बिलकुल भूल गये । हमारी प्राण की धारा निरन्तर एक दिशा में प्रवाहित होती रहे तो आज खेलकूद के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में, विज्ञान के क्षेत्र में, हर क्षेत्र में भारतीय प्रतिभा बहुत निर्यात करने की स्थिति में आ सकती है। किन्तु निरन्तरता और एकाग्रता के अभाव में स्थिति यह है कि कभी-कभी भारत को स्वर्णपदक मिलता होगा, पर आज तो रजत और कांस्य पदक मिलने पर भी आश्चर्य होता है कि एक-दो तो मिला । साठ-सत्तर करोड़ आदमियों का देश और वहां की यह दयनीय स्थिति, बड़ा विचित्र - सा लगता है । परन्तु इसलिए कोई आश्चर्य नहीं होता कि उसका जो साधन था, मूल सूत्र था, वह तो हम खोते जा रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह समस्या है । अध्यापक हो या विद्यार्थी हो,
धारा
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