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मैं कुछ होना चाहता हूं
कोई भी हो, जितना अनुशासन का विकास, जितना चरित्र का विकास होना चाहिए, इसलिए नहीं हो रहा है कि न इच्छाशक्ति है, न संकल्पशक्ति है, न एकाग्रता की शक्ति है और न कोई निरन्तरता । केवल शब्द दिमाग पर लादे जा रहे हैं। ठीक है, शब्द का काम जितना है, उतना तो होगा। शब्द की जितनी शक्ति है और शब्द के माध्यम से जितना विकास होना है वह तो होगा। इसमें तो कोई सन्देह नहीं। किन्तु जो विशिष्टता आनी चाहिए, जो क्षमता आनी चाहिए, जो दक्षता आनी चाहिए वह कैसे आयेगी? कार्य होना एक बात है, कार्य की क्षमता का विकास होना दूसरी बात है और कार्य-क्षमता में दक्षता आना तीसरी बात है। वह दक्षता कैसे आयेगी? Efficiency कैसे बढ़ेगी? निपुणता का तो कोई प्रश्न ही नहीं होता। निपुणता पुस्तकें नहीं लाती, निपुणता चेतना लाती है। चेतना और पुस्तक दोनों का योग हो तब तो दक्षता बढ़ेगी, कोरी पुस्तक तो है पर चेतना की विशिष्टता वहां नहीं जुड़ रही है तो दक्षता सम्भव नहीं हो सकती। मूल प्रश्न है निरन्तरता का, एकाग्रता का।
उस व्यक्ति ने निरन्तर प्रयास किया। निरन्तर प्रयास का परिणाम यह हुआ कि भार उठाते-उठाते, बछड़े को उठाते-उठाते. एक दिन ऐसा आया कि उसकी शक्ति का इतना विकास हो गया कि भारी-भरकम सांड को भी उसने हाथों पर उठा लिया।
यह प्रयत्न-साध्य, विवेक-साध्य और चेतना-साध्य कार्य है। जापान में कराटे और जूड़ो का विकास हुआ। यह शरीर-बल का विकास है, इतना हाथ को मजबूत कर लिया जाता है कि तलवार का भी बार होगा, हाथ कटेगा नहीं। मनुष्य ही यह विकास कर सकता है। यह प्राणशक्ति का विकास है। प्राणशक्ति का ऐसा विकास होता है कि शस्त्र का प्रहार हो रहा है पर कोई असर नहीं हो रहा है। हमने आंखों देखा कि एक भाई ने श्वास भरा, श्वास को रोका और हाथ फैला दिया। दस आदमी लटक गये, पर हाथ तो टस से मस नहीं हुआ। यह प्राणशक्ति का विकास है। शरीर-बल का विकास मनुष्य ही कर सकता है, क्योंकि, उसमें विवेक है। शरीर-बल के बड़े अद्भुत विकास मनुष्य ने किए हैं। आज भी यह परम्परा लुप्त नहीं है, किन्तु उसके प्रति जो महत्त्व का भाव होना चाहिए, जो उसका मूल्यांकन होना चाहिए वह नहीं है। किस प्रक्रिया से शरीरबल को विकसित किया जा सकता है, बढ़ाया जा सकता है, हमारी यह चेतना शायद इतनी जागरूक नहीं है।
मनोबल का विकास भी बहत अपेक्षित है। इतना अद्भुत मनोबल कि कठिन से कठिन समस्या आ जाने पर भी घुटने नहीं टिकते। थोड़ी-सी समस्या है, आदमी घुटने टेक देता है। यह बहुत बड़ी समस्या है। अधिक लोग ऐसे मिलेंगे कि
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