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मैं कुछ
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हैं- शरीर-बल, भाषा-बल, मनोबल और श्वास का बल । मनुष्य ने चारों बलों का, चारों शक्तियों का विकास किया है। शरीर बल का विकास किया है। पशु में शरीर का बल बहुत होता है, किन्तु अपनी-अपनी स्थिति में जितना है, उतना ही रहता हैं । किन्तु मनुष्य बहुत विकास कर सकता है। बहुत तेज दौड़ में आगे बढ़ सकता है । भारोत्तोलन में वह शक्ति का कीर्तिमान स्थापित कर सकता है। अच्छा धावक, अच्छा भारोत्तोलक शरीर के विभिन्न करतब दिखाने वाला, गले के स्पर्श से सांकल तोड़ देने वाला, लोहे की बड़ी-बड़ी सांकल, जिसे हाथी भी न तोड़ सके, अपनी कटी से बांधकर उसे तोड़ देना-ये प्राणशक्ति की दिशा में, अपनी शक्ति की दिशा में मनुष्य विकास किया है । क्योंकि उसमें विवेक की चेतना और विकास की चेतना है, इसलिए वह हर दिशा में विकास की बात सोचता रहता है । एक मनुष्य में विवेक-चेतना नहीं होती तो पशु मनुष्य पर हावी हो जाता। ऊंट में जितना बल होता है, एक घोड़े में जितना बल होता है, एक भैंसे में जो ताकत है उसके सामने मनुष्य 'के शरीर की कोई ताकत नहीं है । पर घोड़ा भी मनुष्य के वश में चलता है. हाथी भी मनुष्य के अधीन है, भैसा भी मनुष्य के अधीन है और मनुष्य सिंह को भी पिंजरे में डाल देता है। इसका कारण है कि उसकी चेतना में विकास की निरन्तर प्रक्रिया चलती है । निरन्तर वह उपाय और समाधान खोजता रहता है और समस्याओं से निपटता रहता है। एक आदमी के मन मे एक संकल्प जगा कि मुझे एक भारी भरकम सांड को हाथों पर उठाना है। कैसे संभव हो सकता है? कहां सांड का भार, कहां सांड की ताकत और कहां मनुष्य का भार और कहां उसकी शक्ति! कैसे संभव हो सकता है? बड़ी असंभव जैसी कल्पना लगी। किन्तु जब चेतना का आयाम खुलता है तो असंभव कल्पना भी संभव बन जाती है, कोई बात दुरूह नहीं होती । उपाय सोचा- बछड़ा जन्मा और पहले दिन उसको उठाया । उठा सकता था, संभव बात थी। दूसरे दिन उठाया, तीसरे दिन उठाया । निरन्तर उठाता रहा, उठता रहा, उठाता रहा । इस निरन्तरता से उसने इतना विकास किया कि बछड़ा बड़ा सांड हो गया, तो भी उसे उठाने में कोई कठिनाई नहीं हुई । निरन्तरता एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है, बहुत मूल्यवान् बात है। पांच मिनट भी कोई व्यक्ति निरन्तर श्वास का अनुभव करता है और बीच में यदि कोई विकल्प न आये तो पांच मिनट के बाद ऐसा लगेगा कि शरीर को कोई चार्ज कर दिया गया है, बैटरी को इतना चार्ज किया गया है कि भीतर से प्रकाश की, प्राण की ऊर्जा की धाराएं दौड़ने लगी हैं। शक्ति का विस्फोट होने लग गया है । निरन्तरता में जो शक्ति होती है, वह कभी बूंद में नहीं होती। बिन्दुपात एक बात है और धारापात दूसरी बात है । बिन्दुपात होता है एक बूंद गिरी, दो मिनट के बाद फिर बूंद गिरी । पहली बूंद सूख
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होना चाहता हूं
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