SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ : जैन योग के सात ग्रंथ बैठकर धर्म्य और शुक्ल ध्यान में संलग्न होना निषण्ण-उच्छ्रित कायोत्सर्ग है। बैठकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निषण्ण। धर्म्य-शुक्ल ध्यान करना-भावतः उच्छ्रित। ४२. धम्मं सुक्कं च दुवे न वि झायइ न वि य अट्टरुद्दाई। एसो काउस्सग्गो निसन्नओ होइ नायव्वो॥ धर्म्य, शुक्ल अथवा आर्त्त, रौद्र-किसी ध्यान में संलग्न नहीं होना निषण्ण कायोत्सर्ग है। बैठकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निषण्ण। ध्यान का अभाव-भावतः शून्य। ४३. अट्ट रुदं च दुवे झायइ झाणाइं जो निसन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निसन्नगनिसन्नगो नाम॥ बैठकर आर्त्त और रौद्र ध्यान में संलग्न होना निषण्ण-निषण्ण कायोत्सर्ग है। बैठकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निषण्ण। आर्त्त-रौद्र ध्यान करना-भावतः निषण्ण। ४४. धम्म सुक्कं च दुवे झायइ झाणाइं जो निवन्नो उ। एसो काउस्सग्गो निवन्नुस्सिओ होइ नायव्वो॥ सोकर धर्म्य और शुक्ल ध्यान में संलग्न होना निपन्न-उच्छ्रित कायोत्सर्ग है। सोकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निपन्न। धर्म्य-शुक्ल ध्यान करना-भावतः उच्छित। ४५. धम्म सुक्कं च दुवे न वि झायइ न वि अ अट्टरुद्दाइं। एसो काउस्सग्गो निवन्नओ होइ नायव्वो॥ धर्म्य, शुक्ल अथवा आर्त्त, रौद्र-किसी ध्यान में संलग्न नहीं होना निपन्न कायोत्सर्ग है। सोकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निपन्न। ध्यान का अभाव-भावतः शून्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003079
Book TitleJain Yoga ke Sat Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy