SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. कायोत्सर्ग प्रकरण : ५ उसिउस्सिओ य तह उस्सिओ अ उस्सिअनिसन्नओ चेव। निसन्नउसिओ निसन्नो निसन्नगनिसन्नओ चेव॥ ११. निवन्नुसिओ निवन्नो निवन्नगनिवन्नगो अ नायव्यो। एएसिं तु पयाणं पत्तेयपरूवणं वोच्छं। (युग्मम्) उच्छ्रित-उच्छ्रित, उच्छ्रित, उच्छ्रित-निषण्ण, निषण्ण-उच्छ्रित, निषण्ण, निषण्ण-निषण्ण, निपन्न-उच्छ्रित, निपन्न (सुप्स), निपन्न-निपन्न (सुप्त-सुप्त)-इन सभी पदों की मैं पृथक् रूप से व्याख्या करूंगा। १२. उस्सिअनिस्सन्नग निवन्नगे अ इक्किक्किम्मि उ पयम्मि। दव्वेण य भावेण य चउक्कभयणा उ कायव्वा॥ उच्छ्रित, निषण्ण और निपन्न-इन तीनों के द्रव्य तथा भाव से चारचार विकल्प करने चाहिए। जैसे १. द्रव्य से उच्छ्रित, भाव से उच्छ्रित। २. द्रव्य से उच्छ्रित, भाव से अनुच्छ्रित। ३. द्रव्य से अनुच्छ्रित, भाव से उच्छ्रित। ४. द्रव्य से अनुच्छ्रित, भाव से अनुच्छ्रित। १३. देहमइजड्डसुद्धी सुहदुक्खतितिक्खया अणुप्पेहा। झायइ य सुहं झाणं एगग्गो काउस्सग्गम्मि॥ कायोत्सर्ग से ये लाभ प्राप्त होते हैं १. देहजाड्यशुद्धि-श्लेष्म आदि दोषों के क्षीण होने से देह की जड़ता का नाश। २. मतिजाड्यशुद्धि-जागरूकता के कारण बुद्धि की जड़ता का नाशा ३. सुख-दुःख-तितिक्षा-सुख-दुःख को सहने की शक्ति का विकास। ४. अनुप्रेक्षा-भावनाओं के लिए समुचित अवसर का लाभ। ५. एकाग्रचित्त से शुभध्यान करने के अवसर का लाभ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003079
Book TitleJain Yoga ke Sat Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy