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१. कायोत्सर्ग प्रकरण
काए शरीर देहे बुंदी चय उवचए य संघाए।
उस्सय समुस्सए वा कलेवरे भत्थ तण पाणू॥ काय के पर्यायवाची शब्द तेरह हैं-काय, शरीर, देह, बोन्दि, चय, उपचय, संघात, उच्छ्य, समुच्छ्रय, कलेवर, भस्त्रा, तनु और पाणु।
२. उस्सम्ग-विउस्सरणा उज्झणा य अवकिरण-छड्डण-विवेगो।
वज्जण-चयणुम्मुअणा परिसाडण-साडणा चेव॥ उत्सर्ग के पर्यायवाची शब्द ग्यारह हैं-उत्सर्ग, व्युत्सर्जन, उज्झन, अवकिरण, छर्दन, विवेक, वर्जन, त्यजन, उन्मोचना, परिशातना, शातना।
३. सो उस्सग्गो दुविहो चेट्टाए अभिभवे य णायव्वो।
भिक्खायरिआइ पढमो उवसग्गाभिजंजणे बीओ॥ वह उत्सर्ग (कायोत्सर्ग) दो प्रकार का होता है-चेष्टा और अभिभव। भिक्षाचर्या आदि प्रवृत्ति के पश्चात् कायोत्सर्ग करना 'चेष्टा कायोत्सर्ग' है और प्राप्त उपसर्गों को सहन करने के लिए कायोत्सर्ग करना 'अभिभव कायोत्सर्ग' है।
४. इहरइवि ता न जुज्जइ अभिओगो किं पुणाइ उस्सग्गे।
ननु गव्वेण परपुरं अभिगिज्झइ एवमेअं पि॥ शिष्य ने पूछा-'गुरुदेव! साधारणतया भी अभियोग करना (बलप्रयोग करना या पराजित करना) उचित नहीं होता, फिर कायोत्सर्ग में वह कैसे उचित हो सकता है? यह कार्य वैसा ही है जैसे गर्व से शत्रु के नगर पर अधिकार करना।'
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