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संकेतिका
आवश्यक छह हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान। प्रस्तुत प्रकरण कायोत्सर्ग के विषय में है। कायोत्सर्ग का शाब्दिक अर्थ है-काया का उत्सर्ग। काया को अप्रकंप कर धर्म्य-शुक्ल ध्यान में लीन हो जाना कायोत्सर्ग है। यह ध्यान की अनिवार्य आवश्यकता है। कायोत्सर्ग के बिना ध्यान सिद्ध नहीं होता।
कायोत्सर्ग का एक अर्थ है-शरीर का शिथिलीकरण। इससे शून्यता का अभ्यास होता है और एकाग्रता बढ़ती है।
प्रस्तुत प्रकरण में कायोत्सर्ग के प्रकार, कायोत्सर्ग क्यों ? कायोत्सर्ग का कालमान, कायोत्सर्ग के लाभ, ध्यान और कायोत्सर्ग, कायिक-वाचिक और मानसिक ध्यान, कायोत्सर्ग कैसे? कायोत्सर्ग का परिणाम, कायोत्सर्ग के दोष आदि-आदि का वर्णन है।
__ जैन आगम-व्याख्या-साहित्य में कायोत्सर्ग के विषय में बिखरे निर्देश प्राप्त होते हैं। विक्रम की पांचवीं-छठी शताब्दी के महान् आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) की कृति आवश्यकनियुक्ति में 'कायोत्सर्ग' का पूरा प्रकरण है। उसमें १३६ गाथाएं हैं। हमने उन गाथाओं में से कुछेक गाथाओं को चुना है, जो इस विषय से साक्षात् संबद्ध हैं।
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