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जीवन की पोथी
द्वारा विनय को प्राप्त हो जाता है, वह अपने आचरण और व्यवहार से बहुत सारे प्राणियों को विनय के मार्ग पर अनायास ले जाता है। जो स्वयं विनय को प्राप्त है वह दूसरे को विनय की ओर नहीं ले जा सकता ।
एक परिवार नियोजन अधिकारी गांव में घूम रहा था । वह लोगों से कह रहा था कि परिवार नियोजन कराना है । लोगों को उसके इतिहास का पता चल गया । एक मुंहफट आदमी ने कहा कि क्या बात करते हो परिवार नियोजन की ? तुम्हारे तो दस बच्चे हैं और परिवार नियोजन की बात करते हो ? क्या बोले ? उसे कहना पड़ा कि भाई ! पहले मैं विकास विभाग में था । विकास अधिकारी था और अब परिवार नियोजन का अधिका बना हूं । विकास विभाग में मैंने विकास किया और अब नियोजन विभाग में स्वयं भी नियोजन करूंगा ।'
कौन कैसे माने ? जिसके दस बच्चे और वह कहे कि परिवार का नियोजन करना है, उसकी बात का कोई भरोसा नहीं करता। बड़ी मुसीबत होती है । जिस व्यक्ति ने अपने व्यवहार से और आचरण से पढ़ाना शुरू किया, सिखाना शुरू किया, वह वास्तव में शिक्षक होता है, उसकी बात बिना कहे मानी जाती है । स्वीकृति होती है, वहां शब्द नहीं बोला जाता, प्रयोग नहीं किया जाता, कहता है उसी बात को मान लेते हैं। हां शब्द का प्रयोग होता है किन्तु शब्द के पीछे अर्थ नहीं होता । वहां के लोगों के मन में संदेह पैदा होता है और लोगों में अनास्था का भी भाव पैदा होता । और ज्यादा कहूं तो घृणा का भाव भी पैदा होता है। एक अवज्ञा का भाव पैदा होता है कि कैसा जमाना आ गया कि ऐसे लोग सीख देने वाले और उपदेश देने वाले हैं जो स्वयं तो करते नहीं हैं और दूसरों को कहते फिरते हैं। दूसरों को वही व्यक्ति विनय के मार्ग पर ले जा सकता है जो स्वय विनय के मार्ग पर चल चुका है।
हमने देखा कि जिन लोगों ने गुरु के चरण में बैठकर सुश्रूषा की है, उपासना की है, और सुना है तथा विनय की प्रतिपत्ति को पाया है, वे लोग ही वास्तव में दूसरों के लिए एक मॉडल बन सकते हैं । प्रारूप बन सकते हैं । हमारे सामने एक प्रारूप चाहिए । एक चित्र चाहिए कि हम वैसे बन सकें । हर व्यक्ति को जरूरत होती है । आजकल मकान बनाया जाता है तो पहले उसका रेखा-चित्र बनाया जाता है। एक चित्र होता है तो उसके आधार पर सारी निर्माण की प्रक्रिया चलती है । अच्छा बनता है । व्यक्ति को भी अपना जीवन बनाना है । हर व्यक्ति को बनाना है । बच्चा है उसे तो अपना जीवन बनाना ही है । दस वर्ष के बच्चे को भी अपना जीवन बनाना है बहुत सारे ऐसे लोग हैं कि पचास वर्ष के हो जाते हैं किन्तु निर्माण नहीं कर पाते, उन्हें भी अपना जीवन बनाना है । और मैं तो सोचता हूं कि मृत्यु
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