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जीवन की पोथी
नरन्तर तपस्या और साधना करनी होती है । निरन्तर कष्ट सहना होता है। तब हमारी चेतना का निर्माण होता है कि जिसमें निरन्तरता आ जाए और निरन्तरता बन जाए।
कल ही मैं पढ़ रहा था कि बहुत सारे वैज्ञानिक बुढ़ापे के निवारण की खोज में लगे हैं। बुढ़ापा आए और सताए नहीं। एक इन्स्टीट्यूट के वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि औषधि, व्यायाम और आहार का संतुलन-ये तीन ऐसे उपाय हैं जिनसे बुढ़ापे को रोका जा सकता है। इन तीनों में आपको अभी औषधि तो नहीं मिलेगी । पर आहार का संतुलन और व्यायाम-ये दो बराबर मिल रहे हैं। अगर आसन और प्राणायाम का नियमित प्रयोग चलता रहे तो शायद आने वाली अनेक बीमारियों और बुढ़ापे के कष्टों से आदमी बच सकता है और सुख का जीवन जी सकता है । दृष्टिकोण तो सुखवादी बन गया किंतु सुख का जीवन जीया जा सके, वैसा उपाय नहीं रहा । बड़ी विचित्र बात है।
___ यदि निरन्तर बीस मिनट के लिए ही अपने श्वास का ध्यान किया जाए, श्वास की प्रेक्षा की जाए, तो उस प्रकार की चेतना का निर्माण हो सकता है कि बहुत सारे मानसिक आघातों और प्रत्याघातों से आदमी बच सकता है। यदि कायोत्सर्ग और अनुप्रेक्षा-मैत्री की अनुप्रेक्षा, अभय की अनुप्रेक्षा-ये प्रयोग निरन्तर चलें तो आदमी बुद्धि और भावना में संतुलन स्थापित कर सकता है । फिर बौद्धिक कठिनाइयों से बच सकता है, भावनामक समस्याओं से बच सकता है और काफी समस्याओं से अपने आपको बचा सकता है।
आप इस सचाई को समझे कि सुख की कामना से सुख नहीं मिलता। अम, कष्ट और तपस्या की साधना से सुख मिलता है। यह बात हमारी समझ में आनी चाहिए । जब सचाई को आदमी नहीं पकड़ता तो वह बहुत सारी गलत बातें कर जाता है । यथार्थ को पकड़े बिना ऐसी बातें कर जाता है कि कुछ मिलता नहीं । एक युवक आया मिल मालिक के पास नौकरी के लए । मिल मालिक उसका इंटरव्यू ले रहा था, परीक्षण कर रहा था। तो मल मालिक ने पूछा 'युवक' ! तुम बताओ कि हमारी मिल का बड़ा उत्पा इन है । क्या तुम बिक्री का काम संभाल सकोगे ? माल बेच सकोगे ? इतना माल निकाल सकोगे ? वह बात पकड़ नहीं पाया। बोला, कि आप कैसी बात कर रहे हैं ? आप अगर मुझे अधिकार दें तो मैं यह सारा काम कर सकता हैं। अधिकार की बात है, अगर आप अधिकार दें तो आपकी कपड़े की मील को भी बेच सकता हूं। कपड़े को बेचना छोटी बात है, मिल को भी वेच सकता हूं।
मुझे लगता है कि बहुत सारे लोग भ्रांतियों का जीवन जी रहे हैं।
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