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प्रश्न है सुखवाद या सुविधावाद का
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और बोला कि क्या तुम नहीं जानते कि इतना बड़ा विद्वान् हूं। क्या मैं अमेरिका में जूते गांठने आया हूं। उस मोची ने शांत भाव से सुना और फिर बोला, ऐसा लगता है कि तुम भारतीय हो । नए-नए ही अमेरिका में आए हो । रीति-रिवाजों से, और यहां के वातावरण से तुम परिचित नहीं हो । तीसरी बात कही कि मैं University का M. A. का विद्यार्थी हूं । और तुम्हें यह भी पता होना चाहिए कि मैं धनाढ्य पिता का बेटा हूं, किन्तु प्रारम्भ से ही मुझे यह पाठ पढ़ाया गया कि दूसरों की सम्पत्ति पर मत रहो । अपने श्रम से धन कमाओ और उसका भोग करो । भला एक धनवान पिता का पुत्र क्या मोची का काम करेगा ? क्या धनवान पिता का पुत्र कोई छोटा-मोटा काम करेगा ? क्या पढ़ा-लिखा आदमी ऐसा काम करेगा ? इन गलत मान्यताओं और धारणाओं ने समाज में दर्द पैदा कर दिया । और दृष्टिकोण ऐसा बन गया कि सीधा सुख मिल जाए, कुछ करने की जरूरत नहीं । साधुसंन्यासियों के पास बहुत सारे लोग जाते हैं। हजारों-हजारों, लाखों-लाखों हिन्दुस्तानी जाते हैं | वंदना करते हैं, आशीर्वाद मांगते हैं कि बस सीधा धन मिल जाए ।
जब तक यह मिथ्याधारणा, मिथ्यादृष्टिकोण नहीं बदलता, तब तक विकास नहीं हो सकता । सारे विश्व के संदर्भ में देखें, आज वे राष्ट्र समृद्धिशाली बने हैं जिन्होंने कठोर श्रम किया है, कर रहे हैं, जिन्होंने पदार्थ के क्षेत्र में काफी विकास किया है, अपनी धाक जमाई है । जो श्रम से जी चुराते हैं, श्रम से कतराते हैं और पड़े रहते हैं, बस आराम करना और पड़े रहना ताकि ज्यादा से ज्यादा खाट को तोड़ सकें, उसमें श्रेय मानते हैं । वस पड़े रहो २ घंटा, ६ घंटा । खाट भली और आदमी भला, तो फिर कैसे विकास हो सकता है ? न राष्ट्र का निर्माण हो सकता है, न समाज का निर्माण हो सकता और न स्वयं के जीवन का निर्माण हो सकता है | जीवन निर्माण की पहली शर्त है कठोर श्रम और समाज व राष्ट्र के निर्माण की पहली शर्त है कठोर श्रम । जो लोग इस सचाई को नहीं समझते, वे अपना जीवन भी नहीं बना पाते । कभी नहीं बना पाते ।
आचार्य भिक्षु एक रात बैठे थे। चार बज गए, साधुओं को उठाया, कहा कि जागो, स्वाध्याय और ध्यान का समय हो गया । साधु उठे और वंदना की, फिर पूछा कि गुरुदेव ! आप कब उठ गए ? आचार्य भिक्षु ने कहा कि पहले यह तो पूछो कि आप कब सोए थे ? उठने की बात बाद की है, पहले सोने की बात पूछो। तो क्या आप सोए ही नहीं ? हां, सोया ही नहीं। लोग आ गए, जिज्ञासु लोग थे वे आ गए। उनके मन में जिज्ञासा थी और मैं जिज्ञासा का समाधान कर रहा था । करते-करते चार बज गए और वे लोग अब गए हैं, चार बजे गए हैं। अत: मैं तुम्हें उठा रहा हूं ।
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