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जीवन की पोथी
मियां कि एक समुद्र से कम उमियां नहीं हैं। जितनी लहरें समुद्र में होती हैं उनसे ज्यादा तरंगें आपके इस छोटे से शरीर में होती हैं। यह भी तो समुद्र ही है।
मेडिकल साइंस बताता है कि हमारे शरीर में ८० प्रतिशत पानी है। अब आप कल्पना क्या करेंगे ? शेष २० प्रतिशत है। शरीर पानी का ही पुतला है, और समुद्र से कम नहीं है । इतना बड़ा समुद्र और इतनी ऊर्मियां, जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती।
शरीर-प्रेक्षा का अर्थ है उन ऊमियों को देखना जो हमारी प्रवृत्तियों का संचालन कर रही हैं । वह जैविक रासायनिक प्रक्रिया है, जो विभिन्न प्रकार के रसायन-केमीकल पैदा होते हैं और उनके द्वारा नाना प्रकार के परिवर्तन और परिणाम घटित होते हैं, नाना प्रकार के पर्याय बदलते हैं । हमें उन पर्यायों को देखना है । किस प्रकार का परिणाम हो रहा है और किस प्रकार की वृत्तियां पैदा हो रही हैं इसे हमें देखना है ।
हमें प्रकम्पनों को देखना है, शरीर के प्रकम्पनों का अनुभव करना है कि कौन सा प्रकम्पन हो रहा है । कहां हो रहा है और किस प्रकार का हो रहा है। यदि यह प्रकम्पन पकड़ने की बात समझ में आ जाए तो हम वेद से निर्वेद की अवस्था में जा सकते हैं।
इन्द्रिय-विषयों का विकार उसी अवस्था में संभव है जब प्रकम्पनों की बात पकड़ में आ जाए । और यह समझ में आ जाए कि अरे ! मैं यह काम क्यों करूं ! यह तो एक तरंग करा रही है। मैं उसे क्यों महत्त्व दूं, तो विराग आ सकता है । जब वेद की बात समझ में आ जाए और यह समझ में आ जाए कि मुझे कठपुतली नहीं बनना है तो विराग आ सकता है । आता है, यह कोई असंभव बात नहीं है ।
संन्यासी के पास एक भाई आकर बोला-'मैं साधना करना चाहता हूं। आप मुझे कोई गुर बताएं ।' संन्यासी ने कहा -जो नगर का राजा है, उसके पास जाओ। वहां साधना का सूत्र तुम्हें मिल जाएगा। वह बोला'भला. राजा के पास जाकर क्या करूंगा ! यदि राजा के पास ही साधना का गुर होता तो संन्यासी आप बने ही क्यों ?' संन्यासी बोला-'वाद-विवाद नहीं, तुम चले जाओ।' राजा अपने कार्य में लीन था, राज्य-संचालन में लगा हआ था। वह जाकर बोला-'संन्यासी ने मुझे भेजा है। मुझे साधना का सूत्र बताओ।' दिन भर बैठा रहा और देखा की राजा ने उसे बैठ जाने को ही कहा था । उसने देखा, राजा तो दिन भर कार्य में व्यस्त है, सारी व्यवस्था का संचालन कर रहा है । राज्य की कार्यवाही संपन्न हुई। राजा ने कहा'चलो, स्नान करने चलें ।' वह राजा के साथ चला और सोचा कि संन्यासी भी बड़ा विचित्र आदमी है । किस बहुधन्धी आदमी के पास मुझे भेजा है ।
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