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________________ प्रश्न है अनासक्ति का व्यर्थ है । व्यर्थ चीज को कोई नहीं उठाता। आदमी उसी चीज को उठाता है जो सार्थक है । कारक जो बदल गया तो आदत वैसी होती ही नहीं। बहुत बड़ा प्रश्न है-किसको बदलना है ? आदत को बदलना है या कारक तत्त्व को बदलना है? हमें कारक तत्त्व को बदलना है । आदत का जो स्रोत है उसे बदलना है, जड़ को बदलना है । हम ध्यान का प्रयोग आदतों को बदलने के लिए नहीं करते । ध्यान से आदत नहीं बदलती । यह तो हमें दिखाई देता है कि आदत बदल गई, स्वभाव बदल गया । आदत बदलना । और स्वभाव बदलना यदि इतना ही काम ध्यान का हो तो छोटी बात होगी। आदत बदल गई और कारक बैठा है, फिर हरी हो जाएगी। जब जड़ विद्यमान है और पानी बरसा, फिर हरी हो जाएगी। जब पतझड़ आया, झड़ जाएगा और फिर बसंत आया तो फिर पत्तों से भर जाएगा। हमें यह काम नहीं करना है। हमें वह कार्य करना है जिससे आदत को हरा करने वाला, आदत को अंकुरित करने वाला जो कारक तत्त्व है, वह बदल जाए। यानी भीतर तक पहुंचना है। प्रेक्षाध्यान के शिविर में शरीर को देखना सिखाया जाता है। पढ़ा पढ़ाया पाठ नहीं पढ़ाया जा रहा है । नई बात पढ़ाई जा रही है और दिखाई जा रही है। शरीर को देखना नहीं है । शरीर के माध्यम से भीतर देखने का अभ्यास करना है। शरीर को तो एक आलम्बन बना लो, माध्यम बना लो। देखना उसके भीतर है । हम कम से कम भीतर जाना तो सीखें । देखना तो सीखें । उसका मात्र बाहरी चक्कर तो न लगाएं । उसके आरपार क्या है और उसके भीतर क्या है यह देखें। केवल बाहरी चमड़ी पर ही चक्कर न लगाएं और उसकी परिक्रमा न करें । प्रश्न होता है कि है ही क्या शरीर के भीतर ? हड्डियां, मांस, रक्त, मज्जा- इनके सिवाय और भीतर है क्या ? किसे देखना है ? यह प्रश्न मन को कुरेदता है। शरीर-प्रेक्षा में जो देखना है वह न तो हड्डियों को देखना है, न मांस को देखना है, न रक्त को देखना है और न मज्जा को देखना है, न नाड़ीतंत्र को देखना है और न ग्रन्थितंत्र को देखना है । कुछ और ही देखना है । भीतर में । वह देखना है जो हमारी आदतों को चला रहा है। जो हमसे काम करवा रहा है उसे देखना है । वह क्या है ? वह है प्रकम्पन । हमारे शरीर के भीतर इतने प्रकम्पन हैं, इतनी तरंगें हैं, वे सारा काम करवा रही हैं। उनको देखना है और उनको पकड़ना है। और वे तरंगें वेग के द्वारा आ रही हैं। भीतर जो वेग है, अनुभूति है, वह अनुभूति अपनी तरंगों को प्रेषित कर रही है और वे तरंगें हमारे बाहर तक पहुच रही हैं । उससे हमारी सारी गतिविधियां चल रही हैं। आदमी झूठ बोलता है, उसके पीछे तरंग काम कर रही है। कोई आदमी चोरी करता है, उसके पीछे तरंग काम करती है। कोई आदमी हत्या करता है और हिंसा करता है, उसके पीछे तरंग काम करती है । इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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