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________________ प्रश्न है अनासक्ति का ७५ दो, मिठाई उस आदत को वह बदल दूं तो नयी आदतों का निर्माण कर सकता हूं। यह हमारी आस्था बने कि पुरानी आदतों को मिटाया जा सकता है, नयी आदतों का निर्माण किया जा सकता है। पुरानी आदतें हमने अपने अभ्यास के द्वारा बनाई थीं और नयी आदतें अपने अभ्यास के द्वारा बना सकते हैं । यह दोनों बातें बहुत संभव हैं । अब आदत, आदत के पीछे अभ्यास और अभ्यास के पीछे कारक तत्त्व तब एक श्रृंखला बन जाती है । आप आदत को नहीं बदल सकते जब तक की आपका अभ्यास इसके साथ नहीं जुड़ जाता। आप अभ्यास भी नहीं कर सकते जब तक कि कारक तत्त्व नहीं बदल जाता । मूल को पकड़ना है, छाया को नहीं । मूल को पकड़ो, छाया अपने आप पकड़ में आ जाएगी । हम लोग सीधा उपदेश करते हैं-तम्माकू पीने की आदत है तो तम्बाकू पीना छोड़ दो, शराब पीने की आदत है तो शराब पीना छोड़ खाने की आदत है तो मिठाई खाना छोड़ दो । जो आदत है छुड़वाना चाहते हैं । मुझे लगता है कि यह काम बहुत सरल नहीं है । शराब को छोड़ देगा पर जब समय आएगा, भीतर से खिंचाव पैदा होगा, सारी नसें टूटने लग जाएंगी। वह लुक-छुपकर शराब पी लेता है। तम्बाकू की भी यही बात है । आदत नहीं बदलती । आदत बदलने के लिए बहुत लम्बा अभ्यास करना होगा । अभ्यास होता है तब आदत में परिवर्तन संभव है । और उस अभ्यास के पीछे पहले ध्यान देना होता है कि मूल कारक तत्त्व क्या है ? आध्यात्मिक आचार्यों ने बात पर ध्यान दिया और उन्होंने तत्त्वों को खोजा । वह कारक तत्त्व है निर्वेद । आ को बदलने का बहुत बड़ा घटक या मूल स्रोत है निर्वेद-अनासक्ति | जब तक निर्वेद नहीं हो जाता, वेदन का मूल सूत्र नहीं टूट जाता, आदत नहीं बदल सकती । वेदन हमारा जुड़ा हुआ है, संवेदन हमारा जुड़ा हुआ है । अनुभूति का भाग जुड़ा हुआ है। तब यह नहीं हो सकता। जैसे—किसी बच्चे को कहा - यह चीज तुम मत खाओ। तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है उसने कहा- ठीक है, छोड़ दूंगा । वेदन छूटा नहीं, वेदना का धागा टूट नहीं । फिर कहा एक बार चख लूं । बच्चे का क्या, बड़े-बड़े लोग कहते हैं- कल से यह छोड़ना है, आज तो जी भर कर खा लूं-वेदन तो छूट नहीं ! अब कल का मतलब आप जितना खा सकें, खा लें। कल कैसे छूटेगा ' बात कैसे संभव होगी ? बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं। जी में आता हैकल उपवास करना है, कल भूखे रहना है । आज ऐसी 'धारणा' करें कि द दिन भूख ही न लगे । यह बात आती है, इसका मतलब उपवास तो किय परन्तु निर्वेद नहीं है | वेदना का धागा टूटा नहीं । जब तक संवेदन का सू जुड़ा रहेगा, तब तक आदत को बदला नहीं जा सकता । आदत को बदल का सूत्र होता है, उस विषय के साथ संवेदन के धागे को डालना । वह त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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