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________________ जीवन की पोथी राग को बदला जा सकता है और विराग किया जा सकता है, वैराग्य का निर्माण किया जा सकता | मनोविज्ञान ने मौलिक मनोवृत्तियों का प्रतिपादन किया कि मनुष्य में कुछ मौलिक मनोवृत्तियां होती हैं। भूख प्यास, काम, लड़ना अदि चौदह मौलिक मनोवृत्तियां बतलाई हैं । दर्शन की भाषा में कहें तो मनुष्य में कर्म का संस्कार होता है । हम बन्धे हुए हैं । मनोविज्ञान की भाषा में मौलिक मनोवृत्ति से बन्धे हुए हैं और दर्शन की भाषा में कर्म-संस्कार से बन्धे हुए हैं। वह राग अपना काम कर रहा है और हम उसके चलाए चल रहे हैं। फिर कैसे परिवर्तन की बात को सोचें ? कैसे व्यक्ति बदले और कैसे समाज बदले ? कैसे धारणाएं बदलें और कैसे जीवन की शैली बदले ? ७४ कर्म का सिद्धांत है कि कर्म - संस्कारों को बदला जा सकता है । मनोविज्ञान का भी सिद्धांत है कि मौलिक मनोवृत्तियों का परिष्कार किया जा सकता है । अगर बदलने की और परिष्कार करने की बात नहीं होती तो आदमी जैसा है वैसा का वैसा रहता, कोई परिवर्तन नहीं आता । हम देखते हैं कि आदमी बदलता है । अच्छा आदमी बुरा बन जाता है और बुरा आदमी अच्छा बन जाता है | यह भारी परिवर्तन है । एक आदमी एक दिन भी भूख को सहन नहीं कर सकता । भूख एक मौलिक मनोवृत्ति है। भूख कर्मशास्त्रीय भाषा में वेदनीय कर्म का उदय है । एक आदमी एक दिन भूखा नहीं रह सकता, किन्तु परिवर्तन ऐसा आता है कि वह पचास दिन की तपस्या कर लेता है । एक ऐसा आदमी है, जिसे दस आदमियों के बीच आते-सोते को डर लगता है । आदमी अकेला नहीं सो सकता । सोएगा तो चारों तरफ कोई न कोई सोने वाला चाहिए। चारों ओर सोएंगे तब तो अपने आपको सुरक्षित मानेगा, नहीं तो डर लगेगा । डर यह कि कोई आ न जाए। कभी-कभी ऐसा होता है, वही व्यक्ति रात को बारह बजे श्मशान में जाकर साधना करता है । यह परिवर्तन कहां से आया ? एक व्यक्ति पैर में कांटा चुभ जाए तो चिल्लाने लग जाता है जौर वही व्यक्ति भयंकर यातना कोई दे, प्राणघातक शस्त्र का प्रयोग कोई कर दे तो शांत और गम्भीर खड़ा रहता है । यह परिवर्तन कहां से आया ? यानी भूख-विजय, शस्त्र विजय, भय-विजय आदमी कर सकता है ? यह कैसे हो सकता है ? राग और विराग दोनों सचाइयां हैं। राग भी एक सचाई है जो कि आदमी के जीवन को प्रभावित करती है और विराग भी एक सचाई है । हमने अपने अभ्यास के द्वारा राग का अर्जन किया है और आदत का रूप दिया है । हम अपने अभ्यास के द्वारा विराग का अर्जन कर सकते हैं और उसे अपनी आदत बना सकते हैं । इस बिन्दु पर आकर कि मैंने अपनी आदतों का निर्माण किया है, उसके पीछे कारक और घटक तत्त्व कौन है ? अगर मैं कारक और घटक तत्त्वों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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