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प्रश्न है अनासक्ति का
आँख है, हम देखते हैं । कान है, हम सुनते हैं । वर्ण है इसलिए देखते हैं और शब्द है इसलिए सुनते हैं। तीन का योग मिला- - आंख, वर्ण और देखने वाला | देखना कोई समस्या नहीं है । रूप का होना कोई समस्या नहीं है । इन्द्रिय का होना कोई समस्या नहीं है । देखा, उससे चिपट गया, वहीं समस्या पैदा हो गई । आदमी बन्धा हुआ है और बांधने वाला कोई भीतर बैठा है। एक कोई गोंद है जो चिपक जाता है । गुजरात के एक संत अभी-अभी हुए हैं। उनका नाम था रविशंकर महाराज | बड़े प्रसिद्ध । उनका जीवन सार्वजनिक सेवा में बीता। एक ठाकुर आया और बोला, 'महाराज ! मैं शराब को छोड़ नहीं सकता ।' उन्होंने कहा - ' भाई ! क्यों नहीं छोड़ सकता ?' वह बोला -- ' शराब ने मुझे इतना पकड़ लिया है कि मैं शराब को छोड़ नहीं सकता । कोई उपाय हो तो बताएं।' उन्होंने कहा, 'दो-चार दिन बाद आना, उपाय बताऊंगा ।' वह चला गया। दो-चार दिन के बाद आया । जैसे ही भीतर घुसा, उसने रविशंकर महाराज को देखा तो वे खंभे को पकड़कर खड़े हुए थे । ठाकूर बोला, 'आप आएं, आपसे बात करना चाहता हूं।' वे बोले – 'मैं आ नहीं सकता, क्योंकि खंभे ने मुझे पकड़ लिया है ।' ठाकुर बोला- 'कैसी बात कर रहे हैं आप, खंभा भी कभी पकड़ सकता है ?' वे बोले, 'ठीक ही कह रहा आप इतना भी नहीं
वह बोला, 'महाराज !
को
पकड़ रखा है, न कि खंभे
हूं, बाहर नहीं आ सकता ।' समझ पाए कि आपने खंभे ने आपको ।' वे बोले, 'तुम सच कहते हो । ठाकुर बोला, आप छोड़ दें, छूट जाएंगे इससे । तत्काल हाथों को फैलाया और खंभा छूट गया, बाहर आ गए। फिर बोले कि यह मेरे लिए है या तुम्हारे लिए भी है ? यह नियम मुझ पर ही काम करेगा या तुम्हारे पर भी काम करेगा ? तुमने शराब को पकड़ा है, शराब ने तुम्हें नहीं पकड़ा है । उसकी बात समझ में आ गई कि शराब ने मुझे नहीं पकड़ा है, मैंने शराब को पकड़ रखा है ।
पकड़ने वाला कोई भीतर बैठा है जो पदार्थ को पकड़ लेता है । पदार्थ आदमी को नहीं पकड़ता, आदमी पदार्थ को पकड़ लेता है । जो पकड़ने वाला है उसे खोजना है। कौन पकड़ रहा है ? कौन गोंद है, जो हाथ लगते ही चिपक जाता है ? वह क्या है ? उसको खोजा गया और वह है राग । एक राग का संस्कार है मनुष्य के भीतर, आसक्ति का संस्कार है मनुष्य के भीतर,
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