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________________ प्रश्न है दृष्टिकोण का दोनों में गठबन्धन और गहरा समझौता है । वह कभी टूटता नहीं है। आवेग ने श्वास से कहा -- 'तुम छोटे-छोटे चलो, ताकि मुझे अच्छा स्थान मिल सके श्वास ने कहा--'मैं छोटा-छोटा चलंगा यह तो ठीक बात है, पर तुम आते रहना । मुझे संभालते रहना ।' दोनों में बड़ा समझौता है। यदि आपने इस समझौते को तोड़ दिया तो सबसे पहले धर्म की क्रांति होगी। धर्म की क्रांति का सबसे पहला सूत्र है, इस समझौते को तोड़ देना। यानी लंबा श्वास लेना दीर्घ श्वास लेना। जैसे ही आपने यह शुरू किया, समझौते का कचूमर निकलना शुरू हो गया, टूटना शुरू हो गया। जहां लंबा श्वास शुरू होता है वहां चिंतन की सारी प्रक्रिया बदलनी शुरू हो जाती है। यह योग का शरीर-विज्ञान है। डाक्टर की अपनी एनेटोमी है ते योग की अपनी एनेटोमी है। यह उसका शरीर-विज्ञान है। श्वास हमारे सारे तंत्र को प्रभावित करता है। जैसे ही श्वास की गति हमने बदली, हृदय परिवर्तन का क्रम शुरू हो गया। दीर्घ श्वास का प्रयोग करते समय हम केवल यही न सोचें कि हम क्या कर रहे हैं। कौन-सा ध्यान कर रहे हैं । श्वास को देख रहे हैं, लम्बा ले रहे हैं । ध्यान हो रहा है । ऊपर से तो बात बड़ी स्थूल सी लगती है और स्थूल दृष्टि वाला आदमी स्थूल बात को पकड़ता है। पर उसके भीतर सूक्ष्म बात को पकड़ें कि यह दीर्घ-श्वास का प्रयत्न कषाय के अभेद्य चक्रव्यूह को तोड़ने का प्रयत्न है और यह अभिमन्यु है जो चक्रव्यूह में घुस जाएगा। यह दूसरे प्रकार का अभिमन्यु है। यह केवल घुसेगा ही नहीं, निकल भी जाएगा । अभिमन्यु घुसा ही था, निकल नहीं सका । पर यह श्वास का अभिमन्यु ऐसा है कि चक्रव्यूह में घुसेगा भी और लौट भी आएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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