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प्रश्न है दृष्टिकोण का
नहीं सोचते हैं तो जमा जमाया धंधा है, चल हो रहा है, चलता रहेगा। उसमें फिर हम क्यों नई बात सोचते हैं ?
बदलने की तो तब सोची जाती है जब कोई संवेदन होता है। भीतर से कोई कुरेदता है। धर्म करते इतना समय बीत गया, किन्तु कुछ हुआ ही नहीं । होने का भी पता नहीं होता और न होने का भी पता नहीं होता । तो मानना होगा कि हम मूर्छा में ही धर्म की आराधना किए जा रहे हैं।
कई बार लोग कहते हैं कि होमियोपैथी दवा ले लें, इससे कोई नुकसान तो है ही नहीं। बिगड़ेगा कुछ नहीं। प्रश्न उठता है कि यदि बिगाड़ नहीं होता है तो उससे भला कैसे हो सकता है ? जिससे भला होगा, उससे नुकसान भी हो सकता है । जहां यह कहा जाए कि इससे नुकसान नहीं होगा तो यह समझ लें कि इससे कोई अधिक लाभ होने वाला भी नहीं है। होमियोपैथी से भयंकर रिएक्शन होता है। कौन कहता है कि रिएक्शन नहीं होता ? रिएक्शन का पता अवश्य होना चाहिए। हम धर्म की आराधना करते हैं तो हमें बदलाव की अनुभूति होनी चाहिए। यह अनुभूति तब होगी जब मुमुक्षा जाग जाएगी।
ये दो बातें घटित होनी चाहिए-पहले मुक्त होने का भाव और फिर धर्म के प्रति श्रद्धा का निर्माण, अभिरुचि का निर्माण। एक ऐसी अभिरुचि पैदा हो जाए कि समस्या का समाधान धर्म के सिवाय कहीं भी नहीं है। इस प्रकार की श्रद्धा का पैदा हो जाना।
___आदमी समस्या का समाधान खोजता है। पर खोजता है गलत स्थान में । जहां नहीं मिलता, वहां समाधान खोजता है। भूख की समस्या का समाधान खेती में खोजा जाता है तो उचित बात है। भूख की समस्या का समाधान है खेती। प्यास की समस्या का समाधान जल स्रोतों में खोजा जाता है तो उचित है। किन्तु समस्या है मन की, समस्या है क्रोध की, समस्या है अहंकार की और समस्या है भय की, समस्या है कलह की । इनका समाधान खोजा जाए पैसे में तो गलत बात है। कहां समाधान मिलेगा ? पैसा आपको अनाज की समस्या का समाधान तो दे सकता है। पास में पैसा है. बाजार में गए, अनाज खरीदा, ले आए, आटा पिसाया, रोटी बनाई, खाई और भूख मिट गई। यह समाधान समझ में आ सकता है। किन्तु भाई-भाई में लड़ाई चल रही है, पति-पत्नी और बाप-बेटे में लड़ाई चल रही है और समाधान पैसे में खोजा जाए तो बड़ी मूर्खता होगी। हमारा ऐसा दृष्टिकोण बन गया कि आज हर बात का समाधान पैसे में खोजा जा रहा है। लोग तो यह कहते हैं कि राजनीति सब पर हावी हो गई किंतु वास्तविकता यह है कि पैसा सब पर हावी हो गया है। राजनीति पर भी पैसा हावी हो गया है। पैसे से राजनीति डगमगा जाती है, सत्ता डगमगा जाती है, सत्ता बदल जाती है।
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