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जीवन की पोथी
उसे संघर्षों का सामना बहुत करना पड़ता है । शत्रुता में जो जाता है उसे संघर्षों का सामना नहीं करना पड़ता । मैत्री की साधना बहुत कठिन साधना है, उलझनभरी और समस्याभरी है। उसका जो विकास करना चाहता है उसे बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ता है । अगर मैत्री की साधना करने वाला विनोद न करे तो संघर्षों को झेलते-झेलते टूट जाता है।
महात्मा गांधी ने लिखा है कि मैं आज महात्मा बना हूं। किन्तु पता नहीं कि मैंने जीवन में कितने संघर्ष झेले हैं, कितनी विपदाएं झेली हैं, कितनी यातनाएं और दुःख झेले हैं। अगर मैं विनोदी नहीं होता तो आज तक मैं समाप्त हो जाता, रहता ही नहीं। सही बात है। एक विनोद के कारण आदमी टिक जाता है, जीवन को चला लेता है। नहीं तो निराशा इतनी आ जाती है कि आदमी संघर्ष के सामने भी घुटने टेक देता है और अपने जीवन को भी समाप्त कर देता है।
। ये सारी निष्पत्तियां मैत्री के कारण हो सकती हैं । इसलिए प्रेक्षाध्यान का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र बन गया, सत्य को खोजो, मैत्री का विकास करो। हमने जीवन के साथ मैत्री, रोग के साथ मंत्री एवं बुढ़ापे के साथ मैत्री, अनेक प्रसंगों के साथ मैत्री की चर्चा की। और इसलिए कि जीवन का एक रहस्य है जीवन विद्युत् । हमारा जीवन बिजली के आधार पर चलता है। शत्रुता के भाव से जीवन की बिजली घट जाती है, समाप्त हो जाती है। जिसकी जीवन-विद्युत् कमजोर है उसमें न प्रतिरोधशक्ति होती है, न प्रसन्नता हो सकती है, न शांति हो सकती है और न सुख का अनुभव हो सकता है। सुख क्या है ? विद्युत् का अनुभव ही तो सुख है । जो व्यक्ति प्राण और अपान को जानता है, इन शक्तियों को और इनके रहस्य को जानता है, वह जानता है कि सुख क्या है । बहुत सारे लोग इस बात को जानते हैं कि भोग करना सुख है । बहुत बड़ी भ्रांति है। गहरे में उतर कर विश्लेषण करें तो ज्ञात होगा कि न भोग में सुख है और न सभोग में सुख है । सुख है विद्युत् । जिसमें जितनी विद्युत् है वह उतना सुख का अनुभव कर सकता है । जिसकी जितनी विद्युत् चुक जाती है वह उतना ही दुःखी बन जाता है।
मंत्री हमारे जीवन की विद्युत्-शक्ति को बढ़ाती है, प्राणशक्ति को बढ़ाती है, और अपानशक्ति को बढ़ाती है। मैत्री प्राण और अपान ----दोनों का योग कर एक स्थायी सुख की सृष्टि करती है । इसलिए प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति यदि ध्यान की शक्ति का मर्म समझता है तो वह है विद्युत् की शक्ति का विकास और विद्युत्शक्ति के विकास का एक अनुपम साधन है मैत्री का विकास । ध्यान के शिविर में साधना की, फिर भी यदि पिता ने अपने पुत्र के साथ मैत्री नहीं की, भाई ने अपने भाई के साथ मैत्री नहीं की, सास ने अपनी बहू के साथ मैत्री नहीं की और बहू ने अपनी सास
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