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________________ ५२ जीवन की पोथी प्रयोगों के द्वारा हमारी अन्तःस्रावी ग्रंथियां सक्रिय होती हैं । वे सक्रिय होकर अपने स्रावों का ठीक प्रवाह रखती हैं । अन्त स्रावी ग्रन्थियों के प्रवाह संतुलित रूप से प्रवाहित होते हैं, तब हमारे मस्तिष्क के कार्टेक्स में जाकर संतुलन की स्थिति का निर्माण करते हैं। जिसकी अन्तःस्रावी ग्रन्थियां गड़बड़ा जाती हैं, उनके स्राव गड़बड़ा जाते हैं, उनका स्वास्थ्य निश्चित रूप से गड़बड़ा जाता है । स्वास्थ्य का बहुत बड़ा माध्यम है ग्रंथियों का संतुलित स्राव । आसन, प्राणायाम और भोजन – ये सारे ग्रन्थियों को संतुलित बनाए रखने वाले हैं ! आसन का उद्देश्य है कि कर्म की निर्जरा होती है, संतुलन रहता है और साथ-साथ थायराइड ग्लेण्ड को भी विश्राम मिलता है और पोषण मिलता है । प्रेक्षा ध्यान के प्रयोग इस आधार पर निर्धारित किए गए हैं कि संतुलन के लिए जो जिम्मेवार हैं ग्रन्थियां और जो जिम्मेवार हैं शरीर के अवयव, उन सबका संतुलन भी बराबर बना रहे । इस आधार पर यह सारा क्रम निर्धारित किया गया है । कुछ लोग ध्यान करते हैं पर आसन करना नहीं जानते । बहुत बड़ा खतरा है। यदि कोई ध्यान करेगा और आसनप्राणायाम नहीं जानेगा तो ध्यान उसके लिए बाधक बन सकता है । ध्यान के द्वारा कुछ समस्याएं भी पैदा होती हैं। आप यह न मानें कि समस्याएं पैदा नहीं होतीं । जो जितनी अच्छी चीज है उसके साथ एक समस्या भी जुड़ी हुई है । दुनिया में ऐसी कोई भी चीज नहीं है जो कल्याणकारी है और समस्याकारी नहीं है । प्रत्येक समाधान के साथ और प्रत्येक कल्याण के साथ एक समस्या जुड़ी रहती है। ध्यान की भी अपनी एक समस्या है । आसन और प्राणायाम इसीलिए है कि ध्यान से पैदा होने वाली समस्या का निवारण किया जा सके। ध्यान के द्वारा पाचन तंत्र पर भी प्रभाव होता है । वह कमजोर होता है । नाड़ी तंत्र को भी शक्ति खर्च करनी होती है । किन्तु आसन किया तो फिर से पूर्ति हो जाती है । जो ध्यान लंबा करता है, किन्तु आसन नहीं करता तो उसका पाचन-तंत्र गड़बड़ा जाता है । इसलिए ये सारे के सारे जुड़े हुए हैं, इनमें अन्तः - सम्बन्ध है । अतः सम्यक् आसन भी बहुत जरूरी है, सम्यक् श्वास भी बहुत जरूरी है और सम्यक् आहार भी बहुत जरूरी है । छठी बात है सम्यक् क्रिया । काम करने की भी सम्यक्ता चाहिए । जिस प्रवृत्ति के साथ शरीर तो चलता है किन्तु मन कहीं दूसरी ओर चलता है, वह क्रिया असम्यक् क्रिया होती है । एक अभ्यास डालना है। कि शरीर और मन साथ-साथ चले । जो काम करें, जिसमें मन चले, उसमें शरीर भी चले । और जिसमें शरीर चले उसमें मन भी चले । अगर आपका हाथ भोजन का कौर उठाने में चल रहा है तो मन भी साथ चले । यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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