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________________ मैत्री : जीवन के साथ ये उसके परिणाम सामने आ रहे हैं । प्रणाली को बदलने की जरूरत है। परिवर्तन में हमारा विश्वास होना चाहिए। परिवर्तन हमारे लिए बहुत आवश्यक है और इससे आदमी बहुत लाभ उठा सकता है। आज पदार्थों के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने बहत परिवर्तन किया है। काफी स्थितियां बदली हैं । परिवर्तन नहीं होता तो समस्याओं का समाधान नहीं होता। काफी परिवर्तन आया है । मानसिक स्तर पर और आध्यात्मिक स्तर पर बहुत बदलने की जरूरत है। प्रेक्षाध्यान का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को बहुत जरूरी चिंतन करना है कि कम से कम उसकी जीवन प्रणाली तो बदले । परिवर्तन कहां से शुरू करे ? प्रातःकाल से शुरू करे। सबसे पहली बात है जल्दी उठना। आप जागते हुए सूरज को देखें, सोते हुए न देखें । सूरज आपके सोते हुए का दर्शन न करें, आप सूरज का दर्शन करें। जीवन की प्रणाली का पहला सूत्र होगा, जल्दी जागना। यह तब संभव होगा कि आप ठीक समय पर सो जाएं । यह जरूरी नहीं कि बारह बजे और एक बजे सोया जाए । व्यस्तता होने पर भी समय की निश्चितता हो तो जल्दी सोया जा सकता है। दूसरी बात है कि आवश्यक क्रियाओं से निवृत्त होकर आसन का प्रयोग करना । जीवन के लिए अनिवार्य है आसन और व्यायाम । इनसे सारे शरीर का तंत्र ठीक काम करने लग जाएगा। बड़ा आश्चर्य होता है कि सामान्य नियम को लोग क्यों नहीं मानते ! जब तक सूरज का ताप और धूप शरीर को नहीं लगती तब तक पाचन-तंत्र आपना काम नहीं करता। लीवर, पेन्क्रियाज, आमाशय और पक्वाशय तब सक्रिय बनते हैं जब सूरज की धूप उन्हें लगती है। ___ तीसरी बात है सम्यक् श्वास । यानी सम्यक् श्वास लो। प्रातःकाल श्वास का प्रयोग करो । उठते ही सम्यक् श्वास से चर्या शुरू होनी चाहिए । इसका मतलब है दीर्घश्वास, छोटा श्वास नहीं। प्रारम्भ से ही लम्बे श्वास के प्रयोग करें। पूरा श्वास लेना और पूरा श्वास निकालना, जिससे कि कार्बन भी पूरा निकल जाए और ऑक्सीजन भी पूरा मिल जाए। शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य सब श्वास पर निर्भर है।। चौथी बात है सम्यक् आहार । आहार भी सम्यक् । आहार के बारे में भी कम जानकारी है। हमारा सूत्र बन गया केवल स्वाद । दीखने में अच्छा और केवल स्वाद । इसके सिवा तीसरी कोई जानकारी नहीं है । बहुत लम् बात है आहार की। इस विषय में जिसे जानना हो वह मेरी पुस्तक 'आहार और अध्यात्म' अवश्य पढ़े। पांचवीं बात है-मानसिक संतुलन । यह तब संभव है, जब इन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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