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जीवन की पोथी
करना और सोलह घण्टा विश्राम लेना।
___ लोग मुझे पूछते हैं, आप इतना कब लिख लेते हैं ? हर समय हम देखते हैं कि लोग अपको घेरे रहते हैं, फिर लिखते कब हैं ? मैं उन्हें कहता हूं कि मैं ज्यादा लिखता ही नहीं हूं। मैं यह मानता हूं कि जो दिन भर लिखेगा, उसके दिमाग से भूसा निकलेगा, कूड़ा-कचरा निकलेगा । बेचारे दिमाग को विश्राम ही नहीं तो उससे निकलेगा ही क्या ! जिस व्यक्ति को कोई नई बात देनी है और चिंतन और नया विचार देना है, उसे पूर्ण विश्राम देना जरूरी है। जो हमेशा सोचता रहता है, हमेशा सक्रियता और चंचलता में रहता है, उससे जो निकलेगा, वह दो नम्बर का माल निकलेगा, असली नहीं निकल सकता । प्रथम श्रेणी का तो निकल ही नहीं सकता।
विश्राम देना और कायोत्सर्ग में रहना बहुत जरूरी है। मुझे याद है कि मैं कोई चीज लिखता हूं तो एक साथ घण्टा से ज्यादा नहीं लिखता, और जब यह लगता है कि अब सोचना पड़ रहा है तो उसी क्षण लेखनी बन्द हो जाती है। जब तक दिमाग अपने ढंग से कुछ देता है, तब तक दोहन करूं और जब लगे कि अब जबरदस्ती हो रही है, कुछ सोचना पड़ रहा है और लेखनी थम रही है तो उसी क्षण लेखनी को विश्राम दे देता हूं। तो दोहन करना भी एक कला है। जो गाय को ज्यादा दुह लेता है तो समस्या पैदा हो जाती है। न दुहना भी समस्या है और ज्यादा दुहना भी समस्या है। दोनों ओर से समस्या पैदा हो जाती है। कुछ लोग दोहन करना ही नहीं जानते और कुछ लोग दोहन ही नहीं करते । न वे मस्तिष्क का दोहन करते हैं और न शरीर का दोहन करते हैं । इस स्थिति में सारे अवयव निकम्मे हो जाते हैं। जो आदमी ज्यादा आराम करता है, उसके शरीर के सारे अवयव निकम्मे बन जाते हैं । शरीर को जितना श्रम चाहिए, वह श्रम नहीं मिलता तो स्वास्थ्य भी आराम करने लग जाता है। फिर बीमारियां भुगतनी पड़ती हैं । अदोहन की समस्या है तो अतिरिक्त दोहन की भी समस्या है। प्राचीन काल की ऐसी प्रणाली थी कि गाय को दुहते और दुहने के बाद फिर उसे बलपूर्वक दुहते कि अगर वह दस वर्ष दूध देती तो दो वर्ष के बाद ही गाय समाप्त हो जाती। अति दोहन भी एक समस्या है। पता नहीं बात क्या है, आदमी बीच की बात को नहीं जानता। आदमी अति पर जाना चाहता । छोर पर जाने में ज्यादा रस है, मध्यस्थ रहने में रस कम है। बीच को नहीं पकड़ता, या तो यह छोर या वह छोर, या तो अति काम या अति आराम । दोनों अच्छे नहीं हैं । न कोरा आराम अच्छा है और न कोरा काम अच्छा है । आराम और काम दोनों के संतुलन से एक अच्छी बात बनती है। किन्तु लगता है कि वर्तमान जीवन प्रणाली में विश्राम वाली बात, शिथिलीकरण वाली बात, कायोत्सर्ग वाली बात जुड़ी हुई नहीं है। इसलिए
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