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________________ ४१ मैत्री : वर्तमान के साथ या मनोरंजन के साधन में लग जायेंगे । प्रहर के प्रहर मनोरंजन में बीत जाए. यह सबसे बड़ी मूर्खता और सबसे बड़ा गरीबी को पालने का साधन है । जो व्यक्ति केवल मनोरंजन में ही रहेगा वह न तो अपना आर्थिक जीवन ही अच्छा बना पाएगा और न आध्यात्मिक जीवन ही अच्छा बना पाएगा। वह कोई काम नहीं कर पाएगा । निकम्मापन, वीर्य का अभाव बहुत बड़ी समस्या है। दो पहलुओं पर विचार करना है कि जिस आदमी ने वीर्य का प्रयोग नहीं किया, श्रम नहीं किया, वह किस स्थिति में जीता है और जिसने श्रम किया, पुरुषार्थ किया, वह किस स्थिति में जीता है। श्रम न करने का क्या परिणाम होता है और श्रम न करने का क्या परिणाम होता है। इन दोनों पहलुओं पर जो विचार करता है और अपने वीर्य का प्रयोग करता है वह वर्तमान के साथ मंत्री स्थापित कर सकता है । बहुत लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अवसर मिलता है, सामग्री मिलती है, साधन मिलते हैं, सारी स्थितियां सुलभ होती हैं। पर अपने आलस्य के कारण, वीर्य के अभाव के कारण, वे अपने कार्य में सफल नहीं हो पाते । श्रम करना, वीर्य का प्रयोग करना, वर्तमान को मूल्यांकित करने का बहुत बड़ा सूत्र है । 尊 जयपुर में शिक्षा विभाग द्वारा एक शिविर था । उसमें राजस्थान के हर जिले के अध्यापक भाग ले रहे थे। शिविर प्रारम्भ हुआ मानसिंह स्टेडियम कार्यक्रम शुरू हुआ तो पहले दिन ही शिकायतों की भरमार । अध्यापकों ने कहा कि इतना काम तो हमसे कभी लिया ही नहीं जाता । सेमिनार में जाते हैं और और शिविरों में भी जाते हैं तो तीन घंटा से ज्यादा कभी काम ही नहीं होता। यहां तो आठ-दस घंटा काम करना पड़ता है । इतना कठोर श्रम तो नहीं हो सकता। दो दिन तो ऐसा लगा कि जैसे कार्य ठप्प हो रहा है । फिर थोड़ा प्रोत्साहन दिया गया । आशा बंधाई गई। दो दिन बाद तो अभ्यास हो गया और बड़ा रस लेने लग गए । मैंने कहा कि हिन्दुस्तान की गरीबी का सबसे बड़ा कारण है श्रम का अभाव। यहां आदमी आलसी बहुत है, श्रम से जी चुराता है। यहां बहुत सम्पदा है । जनसंख्या की वृद्धि के कारण गरीबी है यह भी कोई कारण नहीं है । जनसंख्या का तो बड़ा उपयोग हो पकता है । यह भी एक बहुत बड़ा बल है, एक बहुत बड़ी शक्ति है। न तो रीबी में जनसंख्या कारण है और न सम्पदा का अभाव कारण है । कारण है श्रम का अभाव । श्रम नहीं । जितना श्रम चाहिए वह नहीं है । जितना कठोर श्रम चाहिए वह नहीं हो रहा है । यदि कठोर श्रम वाली बात आए तो गरीबी की समस्या स्वतः हल हो जाए । वीर्य का अभाव बहुत उलझनें पैदा करता है । वीर्य का प्रयोग बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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