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जीवन की पोथी
आदमी अपने आपको भूल जाता है। कौन ऐसा व्यक्ति है जो अपने आपको नहीं भूला हुआ है। जब अपनी विस्मृति हो सकती है, चैतन्य की विस्मृति हो सकती है, अपने स्वरूप की विस्मृति हो सकती है तो भला अपने पत्नी की, अपने भाई की और अपने बाप की और अपने परिवार की विस्मृति हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है । आदमी बहुत भुलक्कड़ है। इसीलिए पहला सूत्र है स्मृति यानी याद रखना । सतत स्मृति । निरन्तर याद रखना। भूलना नहीं । वही व्यक्ति वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित कर सकता है जो स्मृतिवान् है, भूलता नहीं है।
विस्मृति होती है तो वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित नहीं हो सकती। मैत्री जब स्थापित हो जाती है तो फिर वह टूटती नहीं है । या तो कोई मित्र बनता ही नहीं है और जब बन जाता है फिर टूटता नहीं है। कभी-कभी आदमी श्वास लेना भी भूल जाता है। जो श्वास को भी भूल जाता है वह वर्तमान के साथ क्या मैत्री स्थापित करेगा? वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित करने का सबसे शक्तिशाली और सबसे पहला कोई साधन है तो वह है श्वास । जो श्वास के प्रति जागरूक रहता है, इस बात पर ध्यान देता है कि मैं श्वास ले रहा हूं, सचमुच वह वर्तमान का मूल्यांकन करता है । जो श्वास के प्रति उपेक्षा करता है, उसके प्रति ध्यान नहीं देता, वह वर्तमान को ठीक प्रकार से आंक नहीं सकता ।
दूसरा सूत्र है-प्रीति । जो किया जा रहा है उससे मन में कोई आह्लाद पैदा नहीं हो रहा है तो काम चल नहीं सकता। वही व्यक्ति वर्तमान को साथ लेकर चल सकता है जिसमें प्रीति का भाव पैदा हो गया, आह्लाद का भाव पैदा हो गया। आह्लाद बना रहता है तब तक आदमी वर्तमान में बना रहता है । आह्लाद का भाव छूटा, प्रीति का भाव छूटा तो आदमी अतीत में चला जाएगा या भविष्य में चला जाएगा। वर्तमान में जो किया जा रहा है उसके साथ प्रीति । श्वास-प्रेक्षा की जा रही है। उसके साथ आनन्द आ गया, आह्लाद का भाव आ गया, प्रियता जुड़ गई, तो वह चलेगा। श्वास-प्रेक्षा चलेगी और श्वास-दर्शन चलेगा। प्रीति नहीं है तो फिर विकल्प चलेगा, स्मृतियां चलेंगी। आदमी जैसे ही प्रीति को छोड़ता है वैसे ही अतीत में या भविष्य में चला जाता है । प्रीति का धागा बना रहता है तब तक वर्तमान में रहता है । जैसे ही यह प्रीति का धागा टूटता है आदमी भविष्य की यात्रा में निकल पड़ता है।
तीसरा सूत्र है-वीर्य, पराक्रम, पुरुषार्थ, प्रयत्न । यह बहुत मूल्यवान् है। बहुत सारे लोग इसीलिए वर्तमान का मूल्य नहीं करते कि उनमें आलस्य बहुत होता है । वे आलसी होते हैं । पड़े रहते हैं । जो करना होता है, वह नहीं कर पाते । करते ही नहीं। या तो लेटे रहेंगे या निकम्मी गप्पें मारेंगे
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