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जीवन की पोथी
सारी समस्याओं का समाधान देता है। जिन्होंने यह सूत्र पकड़ा है कि वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित करना है तो उन्हें अपने वीर्य का प्रयोग करना होगा, शक्ति का प्रयोग करना होगा। जब शक्ति का प्रयोग होता है, पुरुषार्थ होता है तो वर्तमान को आप ठीक पकड़ पायेंगे और वर्तमान आपका पूरा साथ देगा । जिस व्यक्ति का वर्तमान साथ नहीं देता वह व्यक्ति कभी पराक्रम नहीं कर सकता । जिस व्यक्ति का भाग्य साथ नहीं देता वह व्यक्ति भी पराक्रम नहीं कर सकता।
एक गरीब आदमी किसी संन्यासी के पास गया और नमस्कार कर बोला---'महाराज ! बहुत गरीब हूं। अनुग्रह करें और मेरी गरीबी मिटा दें।' संन्यासी को दया आ गई । उसको एक पारसमणि देते हुए संन्यासी ने कहा'इसे ले जाओ। इससे लोहा सोना बन जाता है । तुम जितना चाहो उतना सोना बना लेना । मैं छह महीने के बाद आकर यह पारसमणि ले जाऊंगा।' वह अत्यन्त प्रसन्न होकर घर गया। पारसमणि को एक ओर रखकर सोचाछह महीने की लम्बी अवधि है । जब कभी सोना बना लूंगा। अभी तो लोहे के भाव आकाश को छू रहे हैं । इस गलत चिन्तन के कारण उसका पुरुषार्थ टूट गया। एक महीना बीता, दो-तीन और चार महीने बीत गए । लोहा का भाव वैसा का वैसा बना रहा । पांच महीने बीत गए। उसने सोचा, अभी एक महीना शेष है। तीस दिन बाकी है । सोना बनने में घंटा भर लगेगा। उनतीस दिन बीत गए । वह गणित में उलझ गया, तर्क में फंस गया । सचाई से दूर होता गया। लोहे के भाव नहीं उतरे और तीसवां दिन बीतते-बीतते संन्यासी आया और पारसमणि लेकर चला गया। वह बेचारा वैसा का वैसा रह गया।
__ यह एक कहानी लग सकती है, एक कल्पना लग सकती है, पर यह बहुत यथार्थ है । न कहानी और न कल्पना किंतु सचाई है। दुनिया में इस प्रकार के लोग होते हैं जो प्रमाद और अपनी गलत मान्यताओं के कारण वर्तमान का मूल्यांकन नहीं करते, वर्तमान के साथ मैत्री नहीं करते । वर्तमान चला जाता है । वह व्यक्ति जो पराक्रम का प्रयोग नहीं करता, वीर्य का प्रयोग नहीं करता, वह वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित नहीं कर सकता।
वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित करने का तीसरा सूत्र है-वीर्यपराक्रम का उपयोग, अपनी शक्ति का उपयोग ।
वर्तमान के साथ मैत्री करने का चौथा सूत्र है--समाधि, एकाग्रता । जो व्यक्ति चंचल होता है वह व्यक्ति वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित नहीं कर सकता । हमारा मन बहुत दौड़ता है। जो व्यक्ति इस सचाई को समझ लेता है कि मन के साथ कब किस प्रकर का व्यवहार करना चाहिए, कब मन को दौड़ने के लिए स्थान देना चाहिए और कब मन को बांध कर पिंजड़े में
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