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जीवन की पोथी
आज एक संयोग भी बहुत सुन्दर मिला । आचार्यवर की सन्निधि हमें प्राप्त है । जो बात कही जाती है सिद्धांत की, वह बात निदर्शन में सामने आती है, प्रयोगात्मक होती है तो समझने में बड़ी सुविधा होती है । आज हमारे सामने उदाहरण भी उपस्थित है । आचार्यवर बहुत बार कहते हैं कि मैं सत्तर वर्ष का जवान हूं। बात तो अटपटी-सी लगती है सुनने में कि भला बत्तीस वर्ष का जवान सुना, किंतु सत्तर वर्ष का जवान यह पुराने साहित्य में कभी-कभार मिलेगा । पर आचार्यश्री कहते हैं कि मैं सत्तर वर्ष का जवान हूं | आचार्यश्री जैसे महान् सन्त कहते हैं अतः इसे अन्यथा तो कैसे मानें । यह तो मान ही नहीं सकते । यह बात अर्थपूर्ण है । मैंने देखा है कि आचार्यश्री ने बुढ़ापे के साथ मैत्री करना सीखा है । जो व्यक्ति बुढ़ापे के साथ मैत्री करना जानता है वह अस्सी वर्ष का भी जवान होता है और नब्बे वर्ष का भी जवान होता है । जो बुढ़ापे के साथ मैत्री करना नहीं जानता वह चालीस वर्ष का भी बूढ़ा हो जाता है, तीस वर्ष का भी बूढ़ा हो जाता है। यह बिलकुल सही बात है । आचार्यवर में कार्यजाशक्ति उतनी ही, इन्द्रियों की शक्ति उतनी ही, ठीक चितन, स्वस्थ, संतुलन, समता - ये सारी बातें हैं । जिस व्यक्ति में ये सारी बातें होती हैं वह बुढ़ापे के साथ मैत्री को पाल सकता है, निभा सकता है और उसका बुढ़ापा जवानी में बदल सकता है ।
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जो व्यक्ति बुढ़ापे के साथ मैत्री नहीं करता, वह ७० वर्ष का होकर फिर बारह वर्ष का बच्चा बनता है । शरीर विज्ञान का एक सिद्धांत है कि हमारे मस्तिष्क की ग्रहणशक्ति बीस-पच्चीस वर्ष की अवस्था में सबसे अच्छी होती है । वह धीरे-धीरे घटते घटते, अस्सी वर्ष तक आदमी पहुंचता है तो बारह वर्ष के बच्चे जैसी ग्रहणशक्ति बन जाती है। ठीक वह संस्कृत का सूत्र याद आ रहा है - पुनरपि बाल्यं कृत जरया। बुढ़ापे ने फिर उसे बच्चा बना दिया । बच्चे के दांत नहीं होते, उसके भी दांत नहीं हैं । फिर बच्चा बनना शुरू हो गया । जो बुढ़ापे के साथ मैत्री नहीं करता उसमें बचपन आता है, नादानी आती है। जो बुढ़ापे के साथ मंत्री कर लेता है उसमें जवानी आती है, वह जवान जैसा रहता है और जवान जैसा कार्य करता है ।
प्रेक्षा ध्यान के सन्दर्भ में आप इस बात पर विचार करें कि ध्यान का अभ्यास अनाग्रह का, तनावमुक्ति का, आहार- संयम का और इन्द्रिय-संयम का अभ्यास है । यह निषेधात्मक भावों से बचने का अभ्यास है । प्रेक्षा ध्यान के अभ्यास का अर्थ है बुढ़ापे के साथ मैत्री करना ।
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