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________________ मैत्री : बुढ़ापे के साथ स्वस्थ है वह उतना ही जवान है और बुढ़ापे से दूर है। हमारी ग्रंथियों का बहुत गहरा सम्बन्ध है । ग्रन्थियों का संतुलन और स्वास्थ्य बुढ़ापे को नहीं आने देता और आने देता है तो उसे सुखी बना देता है। किंतु आवेश और निषेधात्मक भाव ग्रंथितन्त्र को विकृत बना देता है। चैतन्य केन्द्र-प्रेक्षा के सारे प्रयोग ग्रंथितन्त्र को अपने आप स्वस्थ बना देते हैं। हम प्रयोग करते हैं भावात्मक परिवर्तन के लिए और भावों को बदलने के लिए। किंतु जब भाव बदलते हैं तो भाव परिवर्तन के साथ-साथ ग्रन्थियां स्वस्थ भी होती हैं। जिस व्यक्ति की थाइरायड ग्रन्थि स्वस्थ है, चयापचय की प्रक्रिया ठीक है, वह व्यक्ति बहुत लम्बे समय तक स्वस्थ रह सकता है, दीर्घायु हो सकता है, और बुढ़ापे को टालता रहता है । उसका बुढ़ापा दुःखद नहीं हो सकता। किंतु जिसकी थायराइड ग्रन्थि कमजोर हो जाती है, वह आदमी इन सारी कठिनाइयों को भुगतता है। चिन्ताएं और उद्विग्नताएं इसको बिगाड़ देती हैं। आज आदमी इतना उद्विग्न हो गया और इतना कुतूहली हो गया कि बच्चे को बूढ़ा बना देने की या बुढ़ापा ला देने की प्रक्रिया माता-पिता करते हैं। वे चाहते हैं कि बच्चा चालीस का होते-होते बूढ़ा बन जाए । अगर नहीं चाहते तो बच्चे के सामने कभी टी० वी० नहीं रखते । टी०वी० बुढ़ापा लाने का सबसे सुन्दर उपाय है । जिसे बच्चे को बूढ़ा बनाना हो वह अपने घर में टी०वी० लाएगा और खूब दिखाएगा कि बच्चा कहीं जवान न हो जाए। सीधा बचपन से बुढ़ापे में चला जाए। ब्रिटेन में हजारों बच्चे चश्मेधारी बन गए । छोटे बच्चों के भी चश्मे लग गए टी०वी० देखने के कारण । उनमें प्रातःकाल से ही ऐसी तड़प जाग जाती है कि टी०वी० देखें और जब कोई फिल्म आती है तब तो सारी बातें भूल जाते हैं खाना-पीना-सोना । बस, टी०वी० ही टी०वी० । टी०वी० परमात्मा बन जाता है। बहुत सारे लोग हुए हैं दुनिया में जिन्होंने परमात्मा का ध्यान किया है बड़ी तड़प के साथ। पर ऐसा आकर्षक परमात्मा तो दुनिया में कोई हुआ ही नहीं है, जैसा टी०वी० । टी०वी० से आंख जल्दी खराब होती है और आंख जितनी जल्दी खराब होती है, उतना ही जल्दी बूढ़ा बनता है। जितनी ज्यादा उत्सुकता होती है उतना ही व्यक्ति अपनी थाइरायड ग्लैण्ड निष्क्रिय बनाता है। उसके रस-स्राव निष्क्रिय हो जाते हैं। ये सारी मानसिक उद्विग्नताएं और उत्सुकताएं असमय में ही बुढ़ापा लाने वाली हैं। इस सारे माहौल में, आज के वातावरण में बुढ़ापे के साथ मैत्री करना एक बहुत बड़ी समस्या है। किंतु कम-से-कम अध्यात्म के क्षेत्र में और ध्यान के क्षेत्र में जाने वाले लोगों को तो इस बात का चिंतन करना होगा कि वे बुढ़ापे के साथ मैत्री कैसे स्थापित कर सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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