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________________ जीवन की पोथी हैं और जिसमें आग्रह रहता है । किन्तु जो इनसे मुक्त हैं उनका बुढ़ापा तो बहुत सुखद होता है । और हमने यह देखा कि बुढ़ापे में जो परिपक्व विचार और अनुभूतियां आती हैं वे जवानी में कभी नहीं आ सकतीं । जवानी में एक दूसरा नशा होता है, एक उन्माद होता है, एक आवेश भी होता है, किन्तु बूढ़ा आदमी उन सबसे मुक्त हो जाता है और वह और अधिक गहराइयों में जाकर सचाइयों का प्रतिपादन कर सकता है। बुढ़ापे के साथ आदमी मंत्री नहीं कर सकता जो निषेधात्मक भावों में जीता है। बुढ़ापे के साथ मैत्री करने का पांचवा सूत्र है --विधायक भाव, सृजनात्मक दृष्टिकोण । पोजिटिव ऐटीट्यूट जिसका होता है, वह सचमुच बुढ़ापे के साथ मंत्री कर सकता है। कुछ लोग बहुत निराशावादी होते हैं। ने नकारात्मक भाषा में सोचते हैं और उसी भाषा में बोलते हैं। एक मैनेजर ने चपरासी से पूछा, अगर मेरे स्थान पर तुम आ जाओ और तुम्हारे स्थान पर मैं चला जाऊं तो बताओ कि तुम पहला काम क्या करोगे ? बोला, सबसे पहला काम यही करूंगा कि अपने चपरासी को बदल दूंगा। हटाने की और निषेध की भाषा में सब सोचते हैं । कोई रचनात्मक भाषा में नहीं सोचता । बहुत कम लोग होते हैं जो रचनात्मक दृष्टि से देखते हैं । हम विधायक भाषा में बोलें और सोचें। भय, निराशा, झूठी कल्पना संदेह और आवेश-ये हमारे निषेधात्मक भाव हैं। इनमें रहने वाला असमय में ही बूढ़ा बन सकता है। बहुत लोग अकाल में बूढ़े बनते हैं। पाचक रस कम होता है तो आदमी बूढ़ा बनता है । जो आदमी बार-बार क्रोध करेगा उसका रस बिगड़ जाएगा । जो आदमी भयभीत होगा उसका पाचक रस बिगड़ जाएगा, हृदय की गति बिगड़ जाएगी और फेफड़ा कमजोर हो जाएगा । हमारी शक्ति का बहुत बड़ा साधन है हमारा फेफड़ा। यह जितना मजबूत रहता है, आदमी जवान रहता है। रीढ की हड्डी और फेफड़ा सारा काम तो यहीं होता है । सारा आक्सीजन यहीं आता है । श्वास यहीं आता है । तो श्वास के कार्य का क्षेत्र है फुफ्फुस । अगर यह कमजोर है तो आक्सीजन नहीं मिलेगा। आक्सीजन पूरा नहीं मिलेगा और प्राणवायु पूरा नहीं मिलेगा तो हर अवयव अपने आप बूढ़ा बन जाएगा। फुफ्फुस, रीड की हड्डी, लीवर गुर्दा-ये ऐसे अवयव हैं जिनकी शक्ति कम होती है तो आदमी जल्दी बूढ़ा बन जाता है, बड़े दुःख के साथ आदमी रहता है, सुख से नहीं रह सकता । निषेधात्मक भाव इन सबको विकृत बनाते हैं । विधायक भाव प्रेक्षाध्यान का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है। आज का शरीर विज्ञान कहता है कि जिसका ग्रंथितंत्र जितना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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