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________________ मैत्री : बुढ़ापे के साथ ३५ व्यापार में साठ वर्ष तक रह चुके, घर को भरा, परिवार को पाला-पोसा, सब कुछ किया अब साठ वर्ष के हो गए तो जीवन को बदल लेना चाहिए। जीवन की रीति-नीति भी बदल देनी चाहिए। फिर प्राणाली होनी चाहिए आध्यात्मिक । घर से मुक्ति और आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रणाली । यह बहुत सुन्दर बात है। भारत में प्राचीन काल से यह परम्परा चली और जीवन को चार भागों में बांटा--पचीस वर्ष तक शिक्षा, फिर पचीस वर्ष तक गृहस्थ जीवन और फिर पचास वर्ष के बाद वानप्रस्थ की बात आ जाती है। फिर पचहत्तर के बाद संन्यास की । यह बहुत पुरानी परम्परा है। किंतु साठ वर्ष के बाद एक निश्चित क्रम बन जाए समाज में कि साठ वर्ष के हो गए अब घर से छुट्टी। अब समाज, अध्यात्म और दूसरे कामों में लगेंगे। अगर जीवन की यह प्राणाली बन जाए तो कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति बुढ़ापे के साथ मैत्री का मार्ग अपना रहा है। उसका रक्तचाप कम होगा। हृदयरोग कम होगा, हार्ट अटेक कम होगा। बहुत सारी बीमारियां कम हो जाएंगी। ये बीमारियां बहुत व्यस्त और चिन्ता से ग्रस्त रहने के कारण होती हैं। इतना घर का बोझ कि बेचारा लदा-सा रहता है। कभी-कभी फाईलें संभालते-संभालते हार्ट के शिकार हो जाते हैं। बहुत तनाव और बहुत व्यस्तता । आदमी सुख के साधन तो बहुत जुटाता है पर सुख से जीना नहीं जानता। ___ सुख का साधन जुटाता है। हम कहते हैं कि मधुमक्खियां बड़ी मूर्ख हैं जो शहद का संचय करती है और खाता कोई दूसरा है । आदमी भी शायद उससे ज्यादा तो समझदार नही है। मधुमक्खी से कम समझदार है। मधुमक्खियां तो जुटाती ही हैं, पर मरती तो नहीं हैं बेमौत । आदमी सुख की सामाग्री बहुत जुटाता है पर उसे भोगता कभी नहीं, स्वयं तो पचतापचता ही मर जाता है। यह एक विडम्बना है। वह व्यक्ति जो तनाव मुक्त होना जानता है और साथ में चिन्तामुक्त और व्यस्तता से मुक्त होना जानता है, सचमुच वह बुढ़ापे के साथ मैत्री करता है और उसका बुढ़ पा सचमुच सुखद बनता है । बुढ़ापा कोई दुःख नहीं है वास्तव में । बुढ़ापा एक बहुत अच्छी अवस्था है । एक पका हुआ फल है । कच्चा फल खट्टा होता है। जो पक जाता है उसमें मीठास आती है। बुढ़ापा तो जीवन की मीठास है। पचाससाठ और सत्तर वर्ष कार्य करते-करते, देखते-देखते कितनी घटनायें सुनीं, देखीं, जानी और अनुभव की हुई होती हैं, उसके बाद जो रस का परिपाक होता है, जितना परिपक्व और प्रौढ़ अनुभव होता है कि बुढ़ापा कभी दुःखदायी नहीं हो सकता । शास्त्रकारों ने कहा कि बुढ़ापा दुःख है। शायद उनका अभिप्राय यही था कि उन लोगों का बुढ़ापा दुःख है जो खाने का संयम नहीं रखते, जो इन्द्रियों का संयम नहीं रखते, जो तनाव से ग्रस्त रहते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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