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जीवन की पोथी
वह करता है जो हर १० वर्ष के बाद अपने आहार को बदल देता है, अपनी चर्या को बदल देता है । आहार का परिवर्तन कि ४० वर्ष के बाद क्या खाना चाहिए, ५० वर्ष के बाद क्या नहीं खाना चाहिए, ६० वर्ष के बाद क्या नहीं खाना चाहिए। इस प्रकार हर दशक में अपने भोजन का परिवर्तन करते रहता है, वह आदमी बुढ़ापे के साथ मंत्री को भी निभाता है और उसका पालन करता है । और जो इस बात को नहीं सोचता कि चालीस वर्ष में जो खाता था, साठ वर्ष में और भारी भरकम खाने लग गया और मात्रा भी बढ़ गई और भूख भी बढ़ गई तो वह अत्यन्त हानिकारक होता है और बुढ़ापे को अत्यन्त दु:खद बना देता है । उस अवस्था में उसकी न तो आंतें काम करती हैं, और जो खाता है वह पूरा पचता नहीं है । अगर रक्त अधिक बनता है तो या तो ब्लड-प्रेशर की बीमारी या पक्षाघात की बीमारी हो जाती है। नसें झेल नहीं पातीं और रक्त ज्यादा बनता है तो कोई न कोई कठिनाई और समस्या पैदा हो जाती है ।
बुढ़ापे के साथ मैत्री करने का तीसरा सूत्र है-परिमित ‘आहार ।
चौथा सूत्र है-तनावमुक्ति। उस व्यक्ति का बुढ़ापा बहुत दुःखद होता है जो तनाव ग्रस्त रहता है । क्रोध का आवेश, भय का आवेश और काम का आवेश—ये आवेश जितने तीव्र होते हैं उतना ही बुढ़ापा दुःखदायी बनता है। चिन्ताएं भी बहुत रहती हैं । वह चिता-मुक्त रहना नहीं जानता। एक बात और है कि बुढ़ापे में नियंत्रण की शक्ति भी कमजोर हो जाती है। जवानी में अपने पर जितना कंट्रोल कर सकता है आदमी, उतना बुढ़ापे में नहीं कर सकता। उस समय आवेश और प्रबल बन जाते हैं और स्वभाव चिड़चिड़ा बन जाता है । दिनभर किसी को टोकता रहता है, और बकवास करता रहता है । गालियां भी बकता है। बार-बार गुस्सा करता है और उत्तेजना में आ जाता है । नियंत्रणहीन जैसा हो जाता है। तनाव की स्थिति ही उसे बहुत दु:ख में ले जाती है । लोभ भी बढ़ जाता है । जवान आदमी उतना लोभी नहीं होता, बूढ़ा आदमी और ज्यादा लोभी बन जाता है । आज दहेज की समस्या चल रही है । जवान लड़का, जिसकी शादी हुई है, दहेज के लिए इतना चिंताग्रस्त नहीं रहता जितना चिन्तित उसका बूढ़ा दादा या बाप रहता है। अगर लड़का कह भी दे कि दहेज न भी मिले तो क्या है ? तो वे कहते हैं कि तुम जानते ही नहीं। तुम्हें अभी दुनिया का पता नहीं है। यानी सारा पता उनको है । उस बेचारे को पता ही नहीं है । पता उनको है जिनको कुछ भी लेना-देना नहीं है और परलोक जाने की तैयारी कर रहे हैं। इसका कारण है कि उनमें लोभ है।
एक सूत्र आचार्यश्री ने बहुत पहले समाज को दिया था कि साठ वर्ष के बाद अपने जीवन को बदल देना चाहिए । यानी जिस व्यवसाय और
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