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मैत्री : रोग के साथ
करता है । अभय का विकास करें, चिन्ता मुक्त रहें, तनाव से मुक्त रहें तो पचास प्रतिशत पीड़ा पांच प्रतिशत जितनी भी अनुभव नहीं होगी। पीड़ा की अनुभूति सबको समान नहीं होती। एक व्यक्ति को भी समान नहीं होती। भय और चिंता के साथ पीड़ा बढ़ जाती है और अभय व निश्चिन्तता की स्थिति में पीड़ा कम हो जाती है। कुछ लोग बहुत डरपोक होते हैं । पैर में थोड़ा सा कांटा चुभ गया तो इतने डर जाते हैं कि मानो कोई वज्र का प्रहार ही हो गया हो । वे कराहने लग जाते हैं। कुछ लोग भय-मुक्त होते हैं। कोई शस्त्र का प्रहार भी लग जाता है तो उफ तक नहीं करते, उन्हें पीड़ा का अनुभव तक नहीं होता । हमारी भावात्मक और मानसिक स्थितियां पीड़ा के होने और न होने में निमित्त बनती हैं।
अभय का विकास करना रोग के साथ मैत्री स्थापित करना है । अभय का विकास करना पीड़ा के साथ मैत्री स्थापित करना है। चिन्ता और तनाव से मुक्त होना पीड़ा के साथ मैत्री स्थापित करना है । हमने देखा है कुछ लोगों को, जिनके शरीर में भयंकर पीड़ा है, किन्तु उन्होंने अपनी आस्था को जगाया। आस्था का केन्द्र बना लिया और पीड़ा शांत हो गई । आस्था या विश्वास पीड़ा के साथ मैत्री करने का एक सूत्र है।
भावना के परिवर्तन से आदमी में परिवर्तन आ जाता है । कोई पदार्थ का चमत्कार नहीं होता । भावना का चमत्कार है। भावना बदली और आदमी बदल जाता है। हम सचाई को अभी कम जानते हैं । भावना के साथ हमारे रसायन बदलते हैं। जब रसायन बदलते हैं तो आदमी का सारा व्यवहार बदल जाता है। इसमें विश्वास और आस्था बहुत बड़ा काम करती है। न जाने कितने लोग संतों के पैरों की धूली को ले जाते हैं । बड़ा काम देती है और भयंकर बीमारियां मिट जाती हैं। तो क्या यह रेत का चमत्कार है ? धूली का चमत्कार है ? नहीं, यह भावना का चमत्कार है, विश्वास और आस्था का चमत्कार है। आस्था बनी, विश्वास बना, भावना बदली और वैसे ही परिवर्तन शुरू हो जाता है।
__ यह पीड़ा के साथ मैत्री स्थापित करने का एक उपाय है, एक प्रयत्न है। मानसिक क्रिया का एक बहुत बड़ा अंग है संकल्प का बल । संकल्प के द्वारा मैत्री स्थापित की जा सकती है। अनाथी की बात सुनी होगी। राजगृह का एक श्रेष्ठी परिवार, बहुत धनी। इकलौता लड़का । नाम था अनाथी। विवाहित । सब कुछ पास में। एक दिन भयंकर पीड़ा उठी--- चक्षुःशूल, वैद्यों को बुलाया और इलाज करवाया, कोई लाभ नहीं हुआ । अब अनाथी के मन में एक विकल्प उठा कि मेरे पिता ने, मेरी माता ने मेरे लिए इतना किया और इतना धन बहाया फिर भी मुझे पीड़ा-मुक्त नहीं कर सके। मेरे भाइयों ने और मेरे सगे-संबंधियों ने मेरे लिए इतना किया फिर भी मैं पीड़ा
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