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________________ जीवन की पोथी जाएगा, इतना अच्छा परिणाम देगा, ऐसा लगेगा की भले ही आया है। प्राकृतिक चिकित्सा वाले मानते हैं कि ज्वर आता है वह शरीर की शुद्धि के लिए आता है। शरीर में बहुत सारा विष संचित हो जाता है। इसको मिटाने के लिए ज्वर आता है। अब जो विष को निकालने के लिए ज्वर आया, उसे क्या मानेंगे? शत्रु मानेंगे या मित्र मानेंगे ? कष्ट देने वाला कोई शत्रु नहीं होता । त्राण देने वाला कोई मित्र नहीं होता । शत्रु और मित्र की पहचान उससे होती है कि पीछे क्या छोड़ा। एक आदमी मिठाई खाता है। मिठाई खाने में अच्छी लगती है पर खाने के बाद पेट खराब हो जाता है । इसे क्या मानेंगे । अच्छा मानेंगे? या बुरा मानेंगे ? हाजमा कमजोर और दाल का सिरा खा लिया। अच्छा तो लगा खाते समय, पर क्या मानेंगे ? अच्छा मानेंगे या बुरा मानेंगे ? अच्छा नहीं मानेंगे, बुरा मानेंगे । जो अच्छा लगता है वह मित्र होता है, प्रिय ही होता है और अच्छा ही लगता है, यह हमारी भ्रांति ही होगी। और जो बुरा लगता है वह अहितकर होगा, यह भी हमारी भ्रांति होगी। जो अपने जाने के बाद अच्छाई छोड़ जाता है वह हमारे लिए कल्याणकारी मित्र होता है और जो जाने के बाद हमारे लिए बुराई छोड़ जाता है, वह हमारे लिए शत्रु का काम करता है। रोग आता है पीछे कुछ छोड़ जाता है। यदि वास्तव में उसे मित्र की दृष्टि से देखें, उसके साथ मैत्री स्थापित करें तो कल्याण छोड़ जाएगा, बुराई नहीं छोड़ेगा। ___ जयाचार्य ने एक ग्रन्थ लिखा । उसका नाम है "आराधना"। उन्होंने उसमें रोग के साथ मैत्री करने का बहुत सुन्दर मन्त्र दिया है। कष्ट आया है तो मैं उसे प्रीति के साथ सहन करूं। उसके साथ प्रेम करूं । विरोध न करूं। लडूं नहीं । यदि वह लड़ने लग जाएगा तो आर्तध्यान में चला जाएगा। __ मंत्री करने की भी एक विकसित प्रणाली है। आज के मनोवैज्ञानिक बता रहे हैं कि हम दस-बीस वर्षों में ऐसी मानसिक प्रक्रिया खोज लेंगे कि बीमार को, दर्दी को ऐसा प्रशिक्षण देंगे कि वह बिना दवा के दर्द को सहन कर सके। किसी दवा की आवश्यकता नहीं होगी। एक हमारी शारीरिक प्रणाली है। उसमें पीड़ा को सहन करने की क्षमता है। उसमें पीड़ा-शामक रसायन बनते हैं । एक ऐसा रसायन है। ऊपर से जो दवाइयां ली जाती हैं वे भी पीड़ा का शमन करती हैं। किन्तु जो तीसरी बात है मानसिक क्रिया, उसके द्वारा यदि पीड़ा का शमन कर दिया जाए तो यह है रोग के साथ मैत्री करने का प्रयत्न । उसका एक कारण है - भय, चिन्ता और तनाव से मुक्ति । आदमी घबड़ा जाता है, भयभीत होता है, चिन्ता में डूब जाता है । तनाव से ग्रस्त हो जाता है। पांच प्रतिशत पीड़ा को पचास प्रतिशत अनुभव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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