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________________ मैत्री : रोग के साथ २५ अरति का होना, पीड़ा का होना और बीमारी का होना जैसे एक गठबंधन हो गया बीमारी आई और साथ-साथ पीड़ा भी आ गई, कष्टानुभूति भी आ गई । धर्म के क्षेत्र में एक सत्य खोजा गया, जिससे बीमारी की अवस्था में भी आदमी बिलकुल आनन्द में रह सकता है, शांत रह सकता है, समता में रह सकता है और सुख का अनुभव कर सकता है। इधर पीड़ा और उधर वह सुख का अनुभव करे, यह बहुत विचित्र खोज है। वर्तमान में भी आज के वैज्ञानिक इस खोज में लगे हुए हैं कि पीड़ा को कैसे बदला जाए ? पीड़ा की अनुभूति को कैसे बदला जाए ? पीड़ा शामक औषधियां दी जाती हैं तो पीड़ा कम हो जाती है । इससे पीड़ा की अनुभूति कम हो जाती है । सिर में दर्द उठा और डॉक्टर के पास गया और उसने गोलियां दीं तो दर्द शांत हो जाता है । मादक दवा ली, अफीम से बनने वाली गोलियां लीं, दर्द शांत हो गया, दर्द मिट गया । प्रतिवर्ष अरबों-अरबों रुपयों की औषधियां बाजार में बिक रही हैं । और बहुत सारे लोग सिरदर्द, पेटदर्द, जोड़ों का दर्द, संधिदर्द, घुटनों का दर्द - इन सब दर्दों को मिटाने के लिए गोलियां खाते रहते हैं । / यह खोज चिकित्सा के क्षेत्र में भी चल रही है और धर्म के क्षेत्र में भी चली। अगर धर्म न मिटाए तो धर्म की व्यर्थता हो जाए। धर्म के द्वारा पीड़ा का शमन भी होना चाहिए । यदि धार्मिक आदमी को पीड़ा के समय केवल डॉक्टर की शरण लेनी पड़े और कोई उपाय न हो तो एक चिंतन का प्रश्न बन जाता है | चिकित्सा की अनेक पद्धतियां विकसित हुईं दर्द को मिटाने के लिए और रोग को शांत करने के लिए। एक पद्धति उसके साथ मैत्री स्थापित करने की थी कि रोग आने पर डरो मत, उसके साथ मैत्री स्थापित करो । आया है । आने वाला अतिथि है । अतिथि का स्वागत किया जाता है, स्थान दिया जाता है । डरने की जरूरत नहीं । उसने अपने आप स्थान बना लिया है । अब उसका स्वागत करो । यह बहुत बड़ी बात है। रोग का स्वागत कैसे किया जा सकता है ? इसका एक सूत्र है - निर्जरा । यह सोचो कि जो आया है वह कष्ट देगा | कष्ट होगा, पर साथ-साथ निर्जरा होगी, विशुद्धि होगी, ऋण चुकेगा । जो कर्जा किया हुआ है वह चुक जाएगा। सारा दृष्टिकोण बदल जाता है । जब हमारा उसके साथ मैत्री का दृष्टिकोण बन गया तो पीड़ा नहीं देगा | अच्छा है आ गया, क्या बुरा करने वाला है? एक वह आता है, जो कि आते समय बहुत अच्छा लगता है और जाते समय बहुत बुरा लगता है । आता है तो बड़ा आकर्षक होता है और जाता है तो बड़ा दुःख देकर जाता है । रोग आते समय बहुत अच्छा नहीं लगता, पर जाते समय बहुत अच्छा लगता है । इतनी सफाई कर जाएगा, इतनी विशुद्धि कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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