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________________ जीवन की पोथी तक मुझे वह मिला ही नहीं ।' संत ने कहा, 'रोने से नहीं मिलेगा। तुम कुछ अभ्यास करो, साधना करो। मार्ग बता देता हूं।' फकीर वापस जाने लगे तो संत जुनेजा ने कहा, मैं भी जा रहा हूं। संत ने कहा--फिर कोई तुम्हारे सामने चिता की कोई बात आ जाए तो बगदाद में आ जाना और मुझसे समाधान ले लेना। वह बोला, मुझे कोई जरूरत नहीं है आपके पास आने की। मैं क्यों आऊंगा आपके पास ! मैं चिंता करता ही नहीं हूं। मुझे इस बात का विश्वास है कि मैं जब-जब कुछ जानना चाहूंगा तो परमात्मा अपने आप भेज देगा। आज भी आपको मैंने बुलाया था क्या? मैंने तो आपको नहीं बुलाया था। आप अपने आप मेरी समस्या का समाधान करने के लिए आ गए। ऐसे ही फिर कभी कोई समस्या आएगी तो कोई न कोई अपने आप आ ही जाएगा। मुझे आपके पास आने की कोई जरूरत ही नहीं है। जो आदमी अपने भरोसे पर होता है, विश्वस्त होता है, तनाव से मुक्त रहता है, वास्तव में वह अकेला होता है। चिंता से ग्रस्त रहने वाला कभी अकेला नहीं हो सकता। अकेला होना कितना कठिन होता है और अकेला होना कितना समाधान है ! जहां कोई चिंता नहीं, जहां कोई भय नहीं, कोई तनाव नहीं है, वहां कितना सुख की स्थिति है और कितनी आनन्द की स्थिति है ! हमारे आनन्द को और सुख को लीलने वाले तत्त्व दो हैं--भय और चिता। कितना भी पास में पैसा हो, भय आया तो आनन्द काफूर । कितनी ही पास में संपदा हो, मन में भय जागा और सब कुछ समाप्त । सब साधन हैं, तनाव से आदमी भरा और सब कुछ समाप्त । हर व्यक्ति अपने आपका विश्लेषण करे कि कितना भय है जीवन में, कितना तनाव और कितनी चिंताएं हैं जीवन में। ऐसा व्यक्ति कौन मिलेगा जो अभय और चिंतामुक्त हो। और जो ऐसा होता है वह सचमुच दूसरे के लिए परमात्मा-स्वरूप ही होता है, एक आदर्श होता है। ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो इस प्रकार का जीवन जीए । बहुत कठिन बात है इस प्रकार का जीवन जीना और वह व्यक्ति इस प्रकार का जीवन जी नहीं सकता जो अकेले होने की कुंजी को नहीं जानता। ___ अकेला वह हो सकता है जो मुक्त है, अनासक्त है, यानी पदार्थ को भोगता है किंतु पदार्थ से बंधता नहीं है। पदार्थ आदमी को बांधता है। सब बंधे हुए हैं पदार्थ से । पदार्थ को भोगना और काम में लेना एक बात है और पदार्थ से बंध जाना बिलकुल दूसरी बात है। __ आजकल एक संस्कृति का विकास हुआ है। कुछ विचारकों ने और गहरे चितकों ने नई संस्कृति को जन्म देने का प्रयास किया है। उस संस्कृति का काम है अपिरग्रह की संस्कृति, 'थ्रो अवे' की संस्कृति । इस पर बहुत साहित्य निकला है और बहुत चिंतन हुआ है। यानी काम में लो और फेंक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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