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________________ क्या मैं ईश्वर हूं? मरने का भय नहीं है । दोनों बातें हों, उसी स्थिति में अकेलेपन का अनुभव होता है और उसी स्थिति में आदमी अभय हो सकता है। अकेला वह होता है जो तनाव से मुक्त होता है। तनावग्रस्त आदमी कभी अकेला नहीं हो सकता। आज का संसार तनाव से भरा हुआ संसार है । छोटा बच्चा भी आज तनाव से भर जाता है। एक बारह वर्ष का बच्चा घर से क्यों निकल पड़ता है ? एक १४ वर्ष का बच्चा घर क्यों छोड़ देता है ? इसीलिए कि वह तनाव की चूंटी लेकर ही जन्मता है। माता-पिता चूंटी देते हैं। वह जन्मचूंटी नहीं तनाव की घंटी होती है । एक छोटा बच्चा भी तनाव से ग्रस्त है। मानसिक तनाव, भावनात्मक तनाव । तनाव ही तनाव । एक छोटे बच्चे मे भी खिंचाव है। वह खिचाव से मुक्त नहीं है। एक भाई ने सुनाया वह अमेरिका गया और एक घर पर ठहरा। अतिथि होकर वह बैठा है और घर वाले बैठे हैं । दस-बारह वर्ष का बालक आया और माता-पिता के सामने कोई अनुचित व्यवहार करने लगा। पिता ने कहा --- ऐसा मत करो। बच्चा बोला ---'आप कोन होते हैं कहने वाले ? आइन्दा कभी मत कहना। यदि कहेंगे तो मैं शूट कर दूंगा।' वह पिता को कह रहा है और वह दस-बारह वर्ष का बच्चा कह रहा है । जहां की सभ्यता और संस्कृति ही ऐसी हो गई, वहां इतना तनाव है कि छोटा बच्चा भी सीख जाता है कि मैं शूट कर दूंगा। ये ज्यादा अपराध, हत्याएं और आत्म-हत्याएं वहां होती हैं जहां तनाव की भरमार है। तनाव-मुक्त आदमी इस भाषा में कभी सोच ही नहीं सकता। उसके दिमाग में ऐसा आ ही नहीं सकता । सारे अपराधों की जो आधारशिला है वह है तनाव । इससे यह स्पष्ट है कि वह अकेला होना नहीं जानता । अकेला वह है जो तनाव से मुक्त है । अकेला वह है जो चिंता से मुक्त है। जो बहुत चिंता करता है, चिंता ही चिंता कि अब क्या होगा? बुढ़ापे में क्या होगा ? बेटे का क्या होगा ? अगली पीढ़ियों का क्या होगा ? सात पीढ़ियों तक की चिंता करता है, पर पता नहीं है कल का और चिंता करता है सात पीढ़ियों की ! जो आदमी चिता से भरा रहता है, वह कभी अकेला नहीं हो सकता। अकेला वह होता है जो निश्चित रहता बगदाद में एक सूफी संत हुए हैं । उनका नाम था जुनेजा । एक बार जुनेजा घूमने के लिए जंगल में गये। उन्होंने देखा, एक फकीर रो रहा है । बुरी तरह रो रहा है । संत का मन पसीजा, उसके पास गए और बोले, तुम क्यों रो रहे हो ? वह बोला-'क्या बताऊं, कोई कारण है।' संत ने कहा बताओ, क्या कारण है ? हो सकता है कि मैं तुम्हें कोई समाधान दे सकें। उसने कहा- क्या बताऊं, मैं परमेश्वर से मिलने के लिए निकला । पर अभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org WW
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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