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________________ १८ जीवन की पोथी सकता है, पर अकेला नहीं हो सकता। यही सबसे ज्यादा कठिन है, तो साथ साथ यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति भी है । अकेलेपन का अनुभव सबसे बड़ा आनन्द है और अकेलेपन की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है।। __ वही व्यक्ति अकेला हो सकता है जो अभय है। डरने वाला आदमी कभी अकेला नहीं हो सकता। कहीं जाएगा तो साथ में किसी को लेकर जाएगा। डरपोक आदमी रात को सोएगा तो किसी दूसरे को पास में लेकर सोएगा। भीरु आदमी सदा दूसरे के पास में रखकर अपने आपको निश्चिन्त मानेगा। भय से मुक्त मानेगा। किसी भी आदमी को आप देखें। किसी के हाथ में लाठी है, किसी के हाथ में तलवार है, किसी के हाथ में बन्दूक है, किसी के हाथ में मशीनगन है। यह सब क्यों है ? पहचान कर लें कि ये सारे के सारे डरपोक आदमी हैं। शस्त्र वह रखेगा जो कायर आदमी होगा, डरपोक आदमी होगा। शक्तिशाली आदमी कभी शस्त्र पास में नहीं रखेगा। शस्त्र का विकास ही भय के साथ हुआ है । जिस आदमी ने डर को पाला, उसने शस्त्र का निर्माण किया। महावीर अकेले घूम रहे थे । जंगलों में घूमे । शून्य घरों में रहे । उन लोगों के बीच रहे जो लोग संस्कृत नहीं थे और सभ्य नहीं थे। घोर जंगली आदमी थे। तो क्या महावीर के हाथ में लाठी थी? क्या महावीर के हाथ में तलवार और बन्दूक थी ? क्या था पास में ? भगवान महावीर के पास उनका बड़ा भाई राजा नंदीवर्धन आया और बोला-भते ! ये वनवासी लोग, जंगल के चरवाहे, आकर आपको कष्ट दे देते हैं। आप तो ध्यानमुद्रा में खड़े रहते हैं । वे आकर आपको कष्ट दे देते हैं। आप हमें आज्ञा दें, हम ऐसी व्यवस्था करें कि आपको कोई कष्ट न हो।' उस समय महावीर ने कहो 'न भूतं न भविष्यति -यह न हुआ है और न होगा कि तीर्थंकर किसी दूसरे के सहारे अपनी साधना चलाए। किसी दूसरे की छत्रछाया में अपने आपको सुरक्षित माने । यह न हुआ है, और न होगा। तीर्थंकर केवल अपने भरोसे पर ही, अपने बल पर ही साधना चलाते हैं । कोई चिंता मत करो।' . इसका नाम है ईश्वर । इसी का नाम है आत्मज्ञान । वही अकेला हो सकता है जो अभय है । भयभीत आदमी कभी अकेला हो ही नहीं सकता। हमेशा वह दूसरे की शरण में रहता है। . राजा जाता है और सैकड़ों सैनिक साथ में होते हैं । आजकल के शासक जाते हैं तो कितनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था होती है । पहरे पर पहरा और शस्त्रों पर शस्त्र । चारों ओर सुरक्षा की दीवारें खड़ी कर दी जाती हैं। इसका कारण है कि उनमें अकेला होने की क्षमता नहीं है। व्यवहार का जगत् ही ऐसा है कि आदमी अकेला हो नहीं सकता। जो अकेला हो गया वह एक ऐसी दुनिया में पहुंच गया कि जहां जीने का मोह नहीं और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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